अटल बिहारी वाजपेयी ( 25 दिसंबर 1924- 16 अगस्त 2018 )
दस बार लोकसभा के सदस्य
वे दस बार चुनाव जीतकर लोकसभा के सदस्य बने और चार राज्यों का प्रतिनिधित्व किया। पहला चुनाव 1957 में जीता बलरामपुर (गोंडा, उप्र) से। हालांकि इस साल वे लखनऊ और मथुरा से भी लड़े थे पर दोनों जगह हार गए थे। इसके बाद 1967, 1971, 1977, 1980, 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 में चुनाव जीते। वे 1984 में ग्वालियर से लोकसभा का चुनाव हार भी गए थे। उन्हें तब कांग्रेस उम्मीदवार माधव राव सिंधिया ने पराजित किया था।
प्रमुख रचनाएं -
अटल बिहारी वाजपेयी ने जब अपनी कविता में लिखा नव दधिचि
हड्डियां गलाएं तो इस पर उस दौर में खूब
चर्चा हुई। इन पंक्तियों में उनका इशारा सत्तालोलुप राजनेताओं की ओर था। वे उन्हें
त्याग करने की प्रेरणा दे रहे थे। पर उनके इस आशय को कम लोगों ने समझा। अटल बिहारी
वाजपेयी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार के पहले प्रधानमंत्री थे
जिन्होंने गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री पद के पांच साल बिना किसी समस्या के पूरा
किए। उन्होंने 24 दलों के गठबंधन से सरकार बनाई थी जिसमें 81 मंत्री थे। इससे उनकी
नेतृत्व क्षमता का पता चलता है।
शिंदे की छावनी में जन्म
25 दिसंबर 1924 – शिंदे की छावनी, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
पिता – कृष्ण बिहारी वाजपेयी, माता – कृष्णा वाजपेयी, मूल निवासी – बटेश्वर, आगरा, उत्तर
प्रदेश।
एमए (राजनीतिशास्त्र) – डीएवी कॉलेज, डीएवी कालेज,
शिक्षा
बीए - विक्टोरिया कॉलेज,विक्टोरिया
कालेज, ग्वालियर ( अब लक्ष्मीबाई कॉलेज )
एमए (राजनीति शास्त्र )
- डीएवी कालेज, कानपुर।
जीवन यात्रा
1951 - भारतीय जन संघ
के संस्थापक सदस्य।
1954 – पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा, सफलता नहीं मिली।
1957 – बलरामपुर (गोंडा) से पहली बार चुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंचे।
1984 - ग्वालियर में
कांग्रेस के माधवराव सिंधिया के हाथों पराजित हो गए।
1968 - भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष बने, 1973 तक इस पद पर
रहे।
1977 - जनता पार्टी
सरकार में अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री बने
1980 - 6 अप्रैल को भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष बने।
1962 और 1986 में वह
राज्यसभा के सदस्य भी रहे।
तीन बार प्रधानमंत्री बने
16 मई
1996 से 1 जून 1996 – प्रधानमंत्री
13 अक्तूबर 1999 से 22
मई 2004 – प्रधानमंत्री
1998 में 11 और 13 मई
को पोखरण में पांच भूमिगत परमाणु परीक्षण विस्फोट करके भारत को परमाणु शक्ति
संपन्न देश घोषित कर दिया।
बड़े सम्मान
1992 - पद्मविभूषण से
सम्मानित
1994 – श्रेष्ठ सांसद पुरस्कार
2014 - भारत रत्न से
सम्मानित किए गए।
दस बार लोकसभा के सदस्य
वे दस बार चुनाव जीतकर लोकसभा के सदस्य बने और चार राज्यों का प्रतिनिधित्व किया। पहला चुनाव 1957 में जीता बलरामपुर (गोंडा, उप्र) से। हालांकि इस साल वे लखनऊ और मथुरा से भी लड़े थे पर दोनों जगह हार गए थे। इसके बाद 1967, 1971, 1977, 1980, 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 में चुनाव जीते। वे 1984 में ग्वालियर से लोकसभा का चुनाव हार भी गए थे। उन्हें तब कांग्रेस उम्मीदवार माधव राव सिंधिया ने पराजित किया था।
प्रमुख रचनाएं -
मृत्यु या हत्या
अमर बलिदान (लोकसभा में
वक्तव्यों का संग्रह)
कैदी कविराय की
कुण्डलियां
संसद में तीन दशक
अमर आग है
कुछ लेख: कुछ भाषण
सेक्युलर वाद
राजनीति की रपटीली
राहें
बिन्दु बिन्दु विचार, इत्यादि।
मेरी इक्यावन कविताएं
पत्रकारिता से शुरुआत
अटल बिहारी वाजपेयी ने
सार्वजनिक जीवन की शुरुआत पत्रकारिता से की। बाद में पत्रकारिता ही उनके राजनैतिक
जीवन की आधारशिला बनी। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखपत्र पांचजन्य, राष्ट्रधर्म
और वीर अर्जुन जैसे अखबारों का संपादन किया।
जय जवान, जय किसान, जय
विज्ञान
लालबहादुर शास्त्री जी
की तरफ से दिए गए नारे जय जवान जय किसान में अलग से जय विज्ञान जोड़ा। अटल हमेशा
से समाज में समानता के पोषक रहे। विदेश नीति पर उनका नजरिया साफ था। वह आर्थिक
उदारीकरण एवं विदेशी मदद के विरोधी नहीं रहे हैं लेकिन वह इमदाद देशहित के खिलाफ हो,ऐसी
नीति को बढ़ावा देने के वह हिमायती नहीं रहे। उन्हें विदेश नीति पर देश की अस्मिता
से कोई समझौता स्वीकार नहीं था।
अटल इरादों की मिसाल था
परमाणु परीक्षण
वाजपेयी सरकार के समय
11 और 13 मई 1998 को पोखरण में किए गए जो उनके अटल इरादों की मिसाल था। परमाणु
परीक्षणों ने भारत की परमाणु शक्ति को रेखांकित करने के साथ ही दुनिया को चौंकाया
भी था।
भारत ने 11 मई के बाद
13 मई को भी परीक्षण किया। परीक्षण के लिए पहले सुबह नौ बजे का समय तय था, परंतु
हवा का रुख पूर्व से पश्चिम की ओर होने के कारण परीक्षण को रोका गया। इस बीच अचानक
हवा का रुख पश्चिम से पूर्व की तरफ हुआ और तीन बजकर 45 मिनट पर सफलतापूर्वक
परीक्षण संपन्न होने के साथ ही भारत परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्रों की सूची में
शामिल हो गया। ये देश के लिए गर्व का पल था। ऐसे में अगर पूछा जाए कि भारत को
परमाणु राष्ट्र बनाने वाला प्रधानमंत्री कौन? जवाब
मिलेगा अटल बिहारी वाजपेयी। वाजपेयी ने अपने कई भाषणों में इस परमाणु टेस्टं का
श्रेय परमाणु ऊर्जा विभाग के अध्यक्ष आर चिदंबरम और दूसरे रक्षा अनुसंधान और विकास
संस्थान के प्रमुख एपीजे अब्दुल कलाम को भी दिया। पश्चिमी राष्ट्र 1998 में भारत
की परमाणु परीक्षण योजना को भांपने में पूरी तरह नाकाम रहे।
पोखरण परीक्षण के बाद
दुनिया के शक्तिशाली देशों ने गुस्से में भारत की आर्थिक नाकेबंदी भी की। वे इसलिए
और नाराज थे, क्योंकि
भारत ने उनके विकसित सूचना तंत्र को नाकाम कर अपना सफल परीक्षण कर लिया था। उस समय
अमेरिका के चार जासूसी उपग्रह 24 घंटे पूरी दूनिया की निगरानी करते थे जिन पर उस
समय अमेरिका 27 अरब डॉलर प्रति वर्ष खर्च करता था।
संयुक्त राष्ट्र में हिंदी
में पहला भाषण दिया
1977 में जनता सरकार
में विदेश मंत्री के तौर पर काम कर रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्रसंघ
में अपना पहला भाषण हिंदी में देकर सभी के दिल में गहरा प्रभाव छोड़ा था। संयुक्त
राष्ट्र में अटल बिहारी वाजपेयी का हिंदी में दिया भाषण उस वक्त काफी लोकप्रिय
हुआ। यह पहला मौका था जब यूएन जैसे बड़े अतंराष्ट्रीय मंच पर भारत की गूंज सुनने को
मिली थी। वाजपेयी का यह भाषण यूएन में आए सभी प्रतिनिधियों को इतना पसंद आया कि
उन्होंने खड़े होकर तालियां बजाई। 'वसुधैव कुटुंबकम' का
संदेश देते अपने भाषण में उन्होंने मूलभूत मानव अधिकारों के साथ- साथ रंगभेद जैसे
गंभीर मुद्दों को उठाया था।
यूएन के मंच से दुनिया
के ताकतवर देशों को एक तरह से नसीहत और भारत की नीति को साफगोई के साथ तराशे हुए
शब्दों में ढालकर दुनिया के सामने रखा। इस दौरान उन्होंने कहा था, 'मैं
भारत की ओर से इस महासभा को आश्वासन देना चाहता हूं कि हम एक विश्व के आदर्शों की
प्राप्ति और मानव कल्याण तथा उसके गौरव के लिए त्याग और बलिदान की बेला में कभी
पीछे नहीं रहेंगे। अटल जी ने जो भाषण दिया
था उससे यह साफ पता लगाया जा सकता है कि उन्होंने हिंदी भाषा को अपने दिल के कितने
करीब रखा हुआ है।
15 अगस्त 1998 को लालकिला
से पहला भाषण -
पूरी दुनिया में पोखरण
परीक्षण की गूंज सुनाई दे रही थी, देश में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की
जय जयकार हो रही थी। इस बीच स्वतंत्रता दिवस आया और पहली बार 15 अगस्त 1998 को
लालकिला के प्राचीर से प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भाषण दिया। तत्कालीन
प्रधानमंत्री को सुनने के लिए इतनी भीड़ जुटी, ऐसा पहले
सिर्फ नेहरू के दौरान ही ऐसा हुआ था।
देशवासी बहनो भाईयो और
प्यारे बच्चों, अपने
स्वतंत्रता की 51वीं वर्षगांठ पर आप सबको शुभकामनाएं।
हम सब ये जानते हैं कि आजादी हमें सस्ते में नहीं मिली है। एक तरफ महात्मा गांधी
जी के नेतृत्व में लाखों नर नारियों ने आजीवन कारावास की यातनाएं सहन की तो दूसरी
ओर हजारों क्रांतिकारियों ने हंसते हंसते फांसी का फंदा चूम कर अपने प्राणों का
बलिदान दिया। हमारी ये आजादी ये इन सब ज्ञात अज्ञात
शहीदों की देन है। आइए हम सब मिलकर प्रतीज्ञा करें कि हम इस आजादी की रक्षा करेंगे
चाहे हमें इसके लिए सर्वस्व क्यों न न्योक्षावर करना पड़े। मेरे पास भारत के लिए एक दृष्टिकोण है- एक भारत जो भूख और भय से मुक्त हो, एक भारत जो असाक्षरता और अभाव से मुक्त हो।
अटल जी का लालकिला से 2002
का भाषण -
स्वाधीनता के इस पावन
पर्व पर सबको मेरी शुभकामनाएं। हर साल हम तिरंगा फहराते हैं। तिरंगा प्रतीक है
आजादी का, स्वाभिमाना
का त्याग और बलिदान का। आज हम स्वतंत्ता संग्राम के सभी सेनापतियों को शहीदों को
सादर नमन करते हैं। आज भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्था बन
गई है। शुभकामनाएं सभी वैज्ञानिकों को शिक्षकों को कलाकारों को सभी बच्चों।
स्वतंत्रता के संघर्ष में इस महान भारत का सपना हमने देखा था वह सपना आज भी हमारी
आंखों मे हैं कुछ हद तक सपना साकार हुआ है बाकी होना बाकी है। राष्ट्र की सुरक्षा
हमारे लिए सर्वोपरि है। भारत अपनी सुरक्षा के लिए परावलंबी नहीं हो सकता।
जब नेहरू ने कहा था आप
प्रधानमंत्री बनेंगे
अटल बिहारी वाजपेयी
1957 में दूसरी लोकसभा में चुनाव जीतकर पहुंचे थे तो संसद में कश्मीर मुद्दे को
उन्होंने अपने ओजस्वी भाषण में गंभीरता से उठाया। वाजपेयी का इस तरह से भाषण देना
तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को काफी पसंद आया था। प्रभावित होकर
संसद में ही पंडित नेहरू ने कहा कि एक दिन वाजपेयी जरूर प्रधानमंत्री बनेंगे। साल
1996 में यह सच साबित हुई।
इंदिरा गांधी की तारीफ की
वर्ष 1971 में अटल
बिहारी वाजपेयी विपक्ष के नेता थे और इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं। 1971
के युद्ध में पाक के 90,368
सैनिकों और नागरिकों ने सरेंडर किया था। अटल बिहारी वाजपेयी ने सदन में कहा था कि
जिस तरह से इंदिरा ने इस लड़ाई में अपनी भूमिका अदा की है, वह वाकई काबिल-ए-तारीफ है। सदन में युद्ध पर बहस चल रही थी और वाजपेयी ने
कहा कि हमें बहस को छोड़कर इंदिरा की भूमिका पर बात करनी चाहिए जो
किसी दुर्गा से कम नहीं थी।
कैदी कविराय की कुंडलियां
जब 1975 में देश में
इमरजेंसी लगी। देश में गिरफ्तारी का रेला चला। अटल जी भी गिरफ्तार हुए और उन्हें
लाल कृष्ण आडवाणी के साथ बैंगलोर की सेंट्रल जेल में रखा गया। लेकिन अटल जी की
साहित्यिक आजादी और मौलिकता जेल की दीवारों में कैद न हो सकीं। उन्होंने ‘कैदी
कविराय की कुंडलियां’ नाम की रचनाओं को रूप दिया।
सदा-ए-सरहद लेकर लाहौर
पहुंचे
पाकिस्तान के साथ
रिश्ते सुधारने की पहल करते हुए 19 फरवरी 1999 को अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल
में दिल्ली से लाहौर तक बस सर्विस (सदा-ए-सरहद) शुरू की गई। इस बस सेवा की शुरुआत
करते हुए पहले यात्री के तौर बस से वाजपेयी पाकिस्तान की यात्रा पर पहुंचे थे।
यहां उन्होंने पाकिस्तान के तत्कालीन पीएम नवाजशरीफ से मुलाकात कर आपसी संबंधों की
नई शुरुआत की थी। उनका विचार था कि कोई अपना दोस्त बदल सकता है लेकिन पड़ोसी नहीं।
प्रधानमंत्री के तौर पर
बड़ी उपलब्धियां
-
पोखरण परीक्षण के साथ भारत परमाणु शक्ति संपन्न देश बना
-
नेशनल हाईवे डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के तहत स्वर्णिम चतुर्भुज योजना
बनी और देश के प्रमुख शहरों को शानदार सड़कों से जोड़ा गया।
-
गांव गांव से पक्की सड़क से जोड़ने के लिए प्रधानमंत्री ग्रामीण
सड़क योजना बनी।
- आर्थिक सुधार की कई
योजनाएं शुरू हुई जिससे देश की विकास दर में अच्छी बढ़ोत्तरी हुई।
-
कारगिल युद्ध के दौरान सरकार ने उनके नेतृत्व में कूटनीति से काम
लिया और अंजाम तक पहुंचे।
लखनऊ से वाजपेयी का बहुत
पुराना नाता था
पत्रकारिता की शुरुआत
अटल बिहारी वाजपेयी का
लखनऊ से पुराना नाता रहा। हालांकि
लखनऊ उनकी जन्मभूमि नहीं थी पर उन्होंने लखनऊ
को अपनी कर्मभूमि बनाया। अटल जी
संघ के प्रचारक के रूप में पहली बार 1942 में लखनऊ आए थे। 1947 में वे एक बार फिर
लखनऊ आए तब उनकी पीएचडी करने की योजना थी। हालांकि वे पीएचडी नहीं कर सके पर उनके
पत्रकार के तौर पर जीवन की शुरुआत हो गई। भाउराव देवरस के कहने पर वे पीएचडी
छोड़कर पत्र का संपादन करने लगे। तब उन्हें लखनऊ से प्रकाशित होने वाले पत्र
राष्ट्रधर्म के संपादन की जिम्मेवारी मिली। उनके संपादन में 31 दिसंबर 1947 को
राष्ट्रधर्म का पहला अंक आया। उनके संपादन में राष्ट्रधर्म की प्रसार संख्या 12
हजार तक पहुंच गई।
लखनऊ से पांच बार सांसद
वाजपेयी लखनऊ से साल 1991, 1996, 1998,
1999, 2004 में सांसद चुने गए। कुल दस बार अटल जी ने लोकसभा का
चुनाव जीता इसमें वे पांच बार लखनऊ से सांसद रहे। हालांकि वे लखनऊ से 1991
में पहली बार चुनाव
जीते पर 1954
में भी एक उप चुनाव में
वे लखनऊ से भारतीय जन संघ के उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतरे थे। हालांकि इस
चुनाव में उन्हें सफलता नहीं मिली थी। लखनऊ के सभी चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री
अटल बिहारी वाजपेयी का भाषण भाजपा के लिए जीत की हवा बहाने का काम करता था।
शहर के कई हिस्सों में
रहे
अपने लखनऊ प्रवास के
दौरान शुरुआती दिनों में वे अपने सहयोगी बजरंग शरण तिवारी के घर में रहे। इसके बाद
वे कुछ समय तक किसान संघ के भवन में भी रहे। इसके बाद वे अपने मित्र कृष्ण गोपाल
कलंत्री के गन्ने वाली गली के घर में भी रहे। लखनऊ से सांसद बनने के बाद उनका
ठिकाना लंबे वक्त तक मीराबाई मार्ग के गेस्ट हाउस में रहा। बाद में उन्हे ला प्लास
कालोनी में आवास आवंटित हो गया।
अटल कथन -
मेरे पास भारत के लिए
एक दृष्टिकोण है- एक भारत जो भूख और भय से मुक्त हो, एक भारत जो असाक्षरता और
अभाव से मुक्त हो। हमें तेजी से विकास करना होगा। हमारे
पास दूसरा कोई विकल्प नहीं है- विशेषत: गांव के गरीब लोगों के आर्थिक सशक्तिकरण के
लिए।
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए तारों से फूटे
बासंती स्वर
पत्थर की छाती मे उग
आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात कोयल
की कुहुक रात
प्राची में अरुणिम की
रेख देख पता हूं
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए सपनों की कौन
सुने सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा
पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा, रार
नहीं ठानूंगा,
काल के कपाल पे लिखता मिटाता
हूं
गीत नया गाता हूं।
ऊंचाई
जो जितना ऊंचा,
उतना एकाकी होता है,
हर भार को स्वयं ढोता
है,
चेहरे पर मुस्कानें
चिपका,
मन ही मन रोता है।
मेरे प्रभु!
मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत
देना,
गैरों को गले न लगा
सकूं,
इतनी रुखाई कभी मत
देना।
आओ फिर से दिया जलाएं
आओ फिर से दिया जलाएं
भरी दुपहरी में
अंधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह
निचोड़ें-
बुझी हुई बाती सुलगाएं।
आओ फिर से दिया जलाएं
हम पड़ाव को समझे
मंज़िल
लक्ष्य हुआ आंखों से
ओझल
वतर्मान के मोहजाल में-
आने वाला कल न भुलाएं।
आओ फिर से दिया जलाएं।
आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने
घेरा
अंतिम जय का वज़्र
बनाने-
नव दधीचि हड्डियां
गलाएं।
आओ फिर से दिया जलाएं।
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Email - vidyutp@gmail.com
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