Saturday 25 August 2018

जज्बा दुनिया को बदलने का...राष्ट्रीय एकता शिविर

अंतराष्ट्रीय बाल महोत्सव में आए श्रीलंका के बच्चे।
भारत नेपाल श्रीलंका के बीच सरहदों की दीवार ना हो तो कितना अच्छा हो...भला एक फर्क है एक श्रीलंकाई होने में या एक नेपाली होने में या फिर एक पाकिस्तानी होने में...काफी कुछ वैसा ही है जैसे तमिलभाषी, तेलगु भाषी और कन्नड़ भाषी का फर्क है। सरहद के इस पार या उस पार इंसान तो एक जैसे
हैं। बच्चे एक जैसे हैं...सोच एक जैसी है..उड़ान एक जैसी है...कुछ ऐसा ही सोच रहे थे, दुनिया के अलग अलग देशों से आए बच्चे जो 6 नवंबर से 11 नवंबर 2011 के बीच सोनीपत में चल रहे अंतरराष्ट्रीय बाल उत्सव में
हिस्सा लिया। भारत के अलग अलग राज्यों और श्रीलंका नेपाल के 350 से ज्यादा 8
से 12 साल के बच्चे इस शिविर में पहुंचे। अपने अपने देशों का राष्ट्रगान गाते दिखाई दिए। एक दूसरे की भाषा, लोक व्यवहार को समझने की कोशिश करते...दोस्ती करते नजर आए। ये सब कुछ संभव कर दिखाया 82 साल के जाने माने गांधीवादी एसएन सुब्बाराव ने। सुब्बाराव पिछले 12 सालों से बच्चों के लिए इसी तरह का शिविर हर साल नवंबर महीने में लगा रहे हैं। कभी वाराणसी, कभी जोधपुर तो कभी चंडीगढ़। कभी कोई और शहर। 

प्रेरक गीत पेश करते एसएन सुब्बराव। 
1970 से युवाओं के लिए राष्ट्रीय एकता शिविर लगाने के बाद एक बार ख्याल आया कि ऐसा शिविर बच्चों के लिए भी होना चाहिए। सुब्बाराव जिन्हें देश दुनिया में लोग भाई जी के नाम से जानते हैं, साल के तीन महीने दुनिया के अलग अलग देशों में बच्चों के लिए इसी तरह के शिविर लगाते हैं। शिविर में आने वाले युवा और बच्चे एक संदेश लेकर घर जाते हैं। ये संदेश है भिन्न भाषा भिन्न वेश लेकिन भारत अपना एक देश का....ये संदेश है...भिन्नता में एकता..भारत की विशेषता का।
हम इसी संदेश के भूलते जा रहे हैं तभी तो देश के अलग अलग हिस्सों में अलगाव के सुर उभर रहे हैं। अगर हम एक दूसरे की भाषा और संस्कृति का सम्मान करना सीख जाएं तो देश की बहुत सारी समस्याएं खत्म हो सकती हैं। इसलिए असली जरूरत हथियार बनाने और बेचने की नहीं है बल्कि असली जरूरत तो 
मनुष्य निर्माण की है। 
शिविर में आने वाले बच्चे और युवा जब सात दिनों बाद एक दूसरे से अलग होते हैं तब भावुक हो जाते हैं। उन्हे सात दिन के शिविर में पता चलता है कि हमारा देश कितना विशाल है। इसमें कितनी भाषाएं बोली जाती हैं...कितने तरह के पहनावे हैं...खानपान अलग है...लेकिन फिर भी हम एक हैं। आखिर एक बने कैसे रहेंगे जब तक एक दूसरे से प्रेम करना एक दूसरे को सम्मान करना नहीं सीख पाएंगे। सुब्बाराव 1970 युवाओं के लिए देश भर में शिविर में लगा रहे हैं। इस दौरान हजारों नौजवान शिविर में आए। उनमें से कई लोगों की इन शिविरों के बाद बदल गई। विविधताओं वाले देश को समझने की सार्थक कोशिश हैं राष्ट्रीय एकता शिविर।
 -     विद्युत प्रकाश मौर्य - (CHILDREN CAMP, SONIPAT ) 

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