Wednesday 8 August 2018

मुत्तुवेल करुणानिधि - तमिल राजनीति का जादूगर

पांच दशक तक तमिल राजनीति का सबसे बड़ा चेहरा रहे
करुणानिधि का 7 अगस्त 2018 को 94 साल की आयु में निधन हो गया। एक कुशल राजनेता के साथ सफल लेखककविविचारक और वक्ता मुत्तुवेल करुणानिधि का नाम देशके उन वरिष्ठतम नेताओं में शुमार है जो पांच दशक तक तमिल राजनीति के केंद्र में रहे। तमिल फिल्मों की पटकथा लिखते-लिखते करुणा ने तमिल राजनीति की ऐसी पटकथा बुनी कि वहां से कांग्रेस पार्टी सत्ता से बाहर हो गई और उसके बाद की तमिल राजनीति करुणानिधि के आसपास घूमती रही।
कलैनार मतलब कला का विद्वान
करुणानिधि की पार्टी के तकरीबन एक करोड़ समर्थक उन्हें कलैनार कहकर बुलाते हैं। इसका मतलब होता है कला का विद्वान या कला का जादूगर । कई कलाओं में परांगत करुणा के व्यक्तित्व पर यह नाम काफी सही बैठता था। सचमुच वे तमिल राजनीति के जादूगर ही थे।  
50 साल से पार्टी अध्यक्ष
1968 में 26 जुलाई को उन्होंने द्रमुक पार्टी की कमान अपने हाथ में लेने वाले करुणा ने तीन जून 2018 को अपना 94वां जन्मदिन मनाया था। वे 50 साल तक अपनी पार्टी के प्रमुख पद पर विराजमान रहे। राजनीतिक विश्लेषक उन्हें असाधारण संगठनकर्ता मानते हैं।
पेरियार की परंपरा पर चले  
करुणानिधि दक्षिण भारत में ब्राह्मण विरोधी राजनीति का प्रतीक रहे हैं। डीएमके संस्थापक सीएन अन्नादुर्रै और उनके आदर्श पेरियार की तरह करुणानिधि ने भी ब्राह्मणवाद के खिलाफ बिगुल फूंका। उन्होंने एक कार्यक्रम में कहा था कि वह रामायण के आलोचक रहे हैं और आगे भी इसका विरोध करते रहेंगे। सेतुसमुद्रम विवाद के जवाब में करूणानिधि ने हिंदू भगवान राम के वजूद पर सवाल उठाया।करुणा अपनी फिल्मी पटकथाओं में भी विधवा पुनर्विवाहअस्पृश्यता का उन्मूलनआत्मसम्मान विवाहज़मींदारी का उन्मूलन और धार्मिक पाखंड के मुद्दे उठाते रहे और लोकप्रिय होते गए।

14 साल की उम्र में राजनीति में
जस्टिस पार्टी के अलगिरिस्वामी के एक भाषण से प्रेरित होकर मात्र 1साल की उम्र में करुणानिधि दसवीं की पढ़ाई छोड़ सियासत के सफर पर निकल पड़े। दक्षिण भारत में हिंदी विरोध पर मुखर होते हुए करुणानिधि 'हिंदी-हटाओ आंदोलनमें हिस्सा लिया। 1938 में स्कूलों में हिन्दी को अनिवार्य करने पर बड़ी संख्या में युवाओं ने विरोध में हिस्सा लियाकरुणानिधि भी उसमें शामिल थे। 3 जून 1938 को चेन्नई के सैदापेट इलाके से शुरू हुए विरोध प्रदर्शन में उन्होंने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। तब करुणा दसवीं कक्षा के छात्र थे। राजनीति में प्रवेश के साथ ही उनकी पढ़ाई छूट गई।
तमिलनाडु के औद्योगिक नगर कल्लाकुडी में विरोध प्रदर्शन के दौरान करुणानिधि और उनके साथियों ने रेलवे स्टेशन पर लिखा उसका हिंदी नाम मिटा दिया था और पटरियों पर लेटकर रेलगाड़ियां रोक दीथी। इस विरोध प्रदर्शन में दो लोगों की मौत हो गई थी और करुणानिधि को गिरफ्तार कर लिया गया था। इस विरोध प्रदर्शन से उन्हें काफी प्रसिद्धि हासिल हुई।
'कुदियारासुके संपादक बने
करुणा बेहतरीन भाषण और लेखन शैली को देखकर पेरियार और अन्नादुराई ने करुणा को युवावस्था में ही पत्र 'कुदियारासुका संपादक बना दिया। हालांकि बाद में पेरियार और अन्नादुराई के बीच मतभेद पैदा होने दोनों के अलग होने पर वो अन्नादुराई के साथ चले गए।
 पांच बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री
करुणा 1957 में पहली बार तिरुचिरापल्ली जिले के कुलिथालाई  विधानसभा से चुनाव जीतकर विधायक बने। इसके बाद वे कुल 12 बार विधायक चुने गए। करुणानिधि कुल पांच बार (1969–71, 1971–76, 1989–91, 1996–2001 और 2006–2011) तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे। सन 1969 में अन्नादुरई का निधन होने पर करुणानिधि को पहली बार मुख्यमंत्री चुना गया। तब उनके नाम के प्रस्तावक एमजी रामचंद्रन थे।

कभी कोई चुनाव नहीं हारे
करुणानिधि ने अपने 60 साल के राजनीतिक करियर में अपनी भागीदारी वाले हर चुनाव में अपनी सीट जीतने का रिकॉर्ड बनाया है। जब उनकी पार्टी हारी तब भी वे अपने क्षेत्र से जीतकर ही आए। 2004 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने तमिलनाडु और पुडुचेरी में डीएमके के नेतृत्व वाली डीपीए (यूपीए और वामपंथी दल) का नेतृत्व किया और लोकसभा की सभी 40 सीटों को जीता।

तमिल सिनेमा के महान पटकथा लेखक
करुणा तमिल सिनेमा जगत के नाटककार और सफल पटकथा लेखक भी रहे। 20 वर्ष की आयु में करुणानिधि ने ज्यूपिटर पिक्चर्स के लिए पटकथा लेखक के रूप में काम शुरू किया। उनकी पहली फिल्म राजकुमारी  काफी लोकप्रियता हुई। पटकथा लेखक के रूप में उनके हुनर में यहीं से निखार आना शुरु हुआ। द्रविड़ आंदोलन से जुड़े करुणा फिल्में में समाजवादी और बुद्धिवादी आदर्शों को बढ़ावा देने वाली ऐतिहासिक और सामाजिक (सुधारवादी) कहानियां लिखने के लिए मशहूर थे। उन्होंने तमिल सिनेमा जगत का इस्तेमाल करके पराशक्ति नामक फिल्म के माध्यम से अपने राजनीतिक विचारों का प्रचार करना शुरू किया। 1952 में आई यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर एक बहुत बड़ी हिट फिल्म साबित हुई। फिल्म का रूढ़िवादी हिंदूओं ने विरोध किया क्योंकि इसमें कुछ ऐसे तत्व शामिल थे जिसने ब्राह्मणवाद की आलोचना की थी। बाद में करुणानिधि ने कई सफल तमिल फिल्मों की पटकथा लिखी जिन फिल्में में एमजी रामचंद्रन ने अभिनय किया। करुणा ने 75 से ज्यादा तमिल फिल्में की पटकथा लिखी जिसमें ज्यादातर फिल्में हिट रहीं।

सफल लेखक और प्रकाशक
करुणानिधि तमिल साहित्य में अपने योगदान के लिए मशहूर हैं। उनके योगदान में कविताएंचिट्ठियांपटकथाएंउपन्यासजीवनी,  ऐतिहासिक उपन्यास,  मंच नाटक,  संवादगाने आदि शामिल हैं। उन्होंने तिरुक्कुरलथोल्काप्पिया पूंगापूम्बुकर के लिए कुरालोवियम के साथ-साथ कई कविताएंनिबंध और किताबें लिखी। उनकी लिखी पुस्तकों की कुल संख्या 100 से अधिक है। सामाजिक सरोकारों पर केंद्रित उनके नाटक भी काफी मशहूर हुए। यही कारण था कि उन्हें जब-तब सेंसरशिप का सामना करना पड़ा। पचास के दशक में उनके दो नाटकों पर प्रतिबंध लगाया गया था। उन्होंने 10 अगस्त 1942 को अखबार मुरासोली का आरम्भ किया। अपने बचपन में वे मुरासोली नामक एक मासिक अखबार के संस्थापक संपादक और प्रकाशक थे जो बाद में साप्ताहिक और फिर दैनिक अखबार बन गया।

पार्टी के लिए जीवन
करुणानिधि अपनी पार्टी डीएमके के प्रति अपनी वफादारी के लिए जाने जाते थे। एक वाकया है जो उनकी पार्टी के प्रति वफादारी को दिखाता है। करुणानिधि के जीवन में एक समय ऐसा भी आयाजब उनकी पहली पत्नी पद्मावती मृत्युशैया पर थींलेकिन वो इनके पास ठहरने के बजाय पार्टी की बैठक के लिए चले गए थे। उनके इस कदम ने पार्टी कार्यकर्ताओं में उन्हें काफी लोकप्रिय बना दिया था और पार्टी में उनका कद काफी बढ़ गया था।

पुश्तैनी घर बना संग्रहालय
करुणानिधि के बचपन का नाम दक्षिणमूर्ति था। 1924 में थिरुक्कुवालाई गांव में जन्में करुणानिधि के घर को अब संग्रहालय में बदल दिया गया है। यहां पोप से लेकर इंदिरा गांधी तक के साथ उनकी तस्वीरें लगी हैं।

तीन शादियां, 4 बेटे और दो बेटियां
करुणानिधि ने तीन शादियां की। उनकी पहली पत्नी पद्मावतीदूसरी पत्नी दयालु अम्माल और तीसरी पत्नी रजति अम्माल हैं। पद्‍मावती का निधन हो चुका हैजबकि दयालु और रजती जीवित हैं। उनके 4बेटे और 2 बेटियां हैं। एमके मुथू पद्मावती के बेटे हैं। जबकि एमके अलागिरीएमके स्टालिनएमके तमिलरासू और बेटी सेल्वी दयालु अम्मल की संतानें हैं। करुणानिधि की तीसरी पत्नी रजति अम्माल की बेटी कनिमोझी हैं।
जयललिता से विरोध
 फिल्मों की पटकथा लिखने के दौरान करुणानिधि की और एमजी रामचंद्रन की जोड़ी खूब जमी। परबाद में इस जोड़ी में दराद पड़ गई और एमजीआर ने द्रमुक से अलग होकर अन्नाद्रमुक पार्टी बनाई। एमजीआर के जीवित रहने तक करुणा उन्हें सत्ता से बाहर नहीं कर पाए पर एमजीआर की विरासत को आगे संभालने वाली जे जयललिता को पराजित करने में उन्हें सफलता मिली। करुणा और जयललिता के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्धिता कई बार काफी चरम पर देखने को मिली। साल 1996 में करुणानिधि ने जयललिता के घरों में छापा मरवाया था। इस छापे में करोड़ों रुपये बरामद हुए थे। इसके बाद जया को जेल जाना पड़ा था।  इसका बदला जया ने भी लिया। 2001 में जयललिता के निर्देश पर करुणानिधि, उनके पूर्व मुख्य सचिव केए नाम्बिआर और अन्य कई लोगों के एक समूह को चेन्नई में फ्लाईओवर बनाने में भष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार भी किया गया।

विरासत के लिए लड़ाई
करुणानिधि की राजनीतिक विरासत को लेकर उनके दो बेटे एमके अलागिरी और एमके स्टालिन में संघर्ष काफी समय तक चला। पर इस संघर्ष में छोटे बेटे स्टालिन हमेशा भारी पड़े। उनके प्रशंसकों की फेहरिस्त भी बड़ी है वहीं वे अलागिरी की तुलना में ज्यादा पढ़े लिखे और कूटनीति में माहिर भी हैं। हालांकि करुणानिधि ने कई मौकों पर सार्वजनिक मंचों से संकेत दे दिया था कि उनके बाद उनकी विरासत को एमके स्टालिन ही संभालेंगे। स्टालिन का चेन्नई क्षेत्र में ज्यादा प्रभाव है तो अलागिरी का मदुरै क्षेत्र में। पर दोनों भाइयों लड़ाई साल 2014 में चरम पर पहुंच गई उसके बाद अलागिरी को द्रमुकप्रमुख ने जनवरी, 2014  पार्टी से बाहर निकाल दिया गया था।  करुणानिधि के पहले बेटे मुथु राजनीति में ज्यादा रूचि नहीं रखते। वहीं उनके चौथे बेटे एमके तमिलारासू बहुत लो प्रोफाइल व्यक्ति हैं।

परिवारवाद को लेकर आलोचनाएं
करुणानिधि कई मौकों पर आलोचना के भी शिकार हुए। खासतौर पर उनके ऊपर परिवारवाद को बढ़ावा देने के आरोप लगे। सबसे पहले अपने बेटे मुत्थु को फिल्मों में हीरो के तौर पर उतारा हालांकि उनकी फिल्मों को ज्यादा सफलता नहीं मिली। पर उनके इस कदम से एमजी रामचंद्रन के साथ उनके रिश्तों में दरार बढ़ी। कहा जाता है कि यहीं से एमजीआर और करुणा की राहें अलग अलग हुईं और एमजीआर ने एआईडीएमके नामक नई पार्टी का गठन किया। इसी तरह बेटों को राजनीति में बढ़ावा देने के कारण वाइको जैसे तेजतर्रार नेता को भी राजनीति में किनारे लगाने का आरोप उनके ऊपर लगा। बाद में उपेक्षा के कारण वाइको डीएमके छोड़कर चले गए। यहां तक की करुणा पर अपने बेटे के लिए मारन बंधुओ की उपेक्षा के भी आरोप लगे।

हमेशा काला चश्मा और पीले शॉल में  
हमेशा आंखों पर मोटा काला चश्मा लगाए रहने वाले करुणा तर्कशील और अंधविश्वास विरोधी होने का दावा करने के बावजदू अपने कंधे पर हमेशा एक पीला शॉल धारण किए दिखाई देते थे। हालांकि वे जीवन भर परंपरागत धार्मिक मान्यताओं का बहिष्कार करते रहे, पर कहा जाता है कि वे वृहस्पति की शांति के लिए ऐसा करते थे। करुणा पहले मांसाहारी थे पर बाद में शाकाहारी हो गए। बुजुर्ग होने पर भी राजनीति में काफी सक्रिय रहने के पीछे बताया जाता है कि वे नियमित योगाभ्यास किया करते थे। हालांकि आखिरी दिनों में वे चलने फिरने में लाचार हो गए थे। तब उनके लिए एक विशेष ह्वील चेयर का निर्माण कराया गया था, जिसके सहारे वे चलते फिरते दिखाई देते थे।
कार्यकर्ताओं को हर रोज पाती
करुणानिधि ने अपनी राजनीतिक विचारधाराओं और मुद्दों के प्रसार के लिए एक पत्रकार और कार्टूनिस्ट के रूप में भी अपनी प्रतिभा का खूब उपयोग किया। वे अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को रोज चिट्ठी लिखा करते थे। यह सिलसिला उनके बुजुर्गु होने तक तकरीबन 50 साल तक चलता रहा।

अपना मकान दान किया
करुणानिधि अपने जीवन काल में ही अपना विशाल मकान दान करने का एलान कर चुके हैं। उनकी इच्छा के मुताबिक उनकी मौत के बाद उनके घर को गरीबों के लिए अस्पताल में तब्दील कर दिया जाएगा।
करुणा के जीवन पर किताब
करुणानिधि के जीवन पर हाल में एक पुस्तक आई है करुणानिधि ए लाइफ इन पॉलिटिक्स। चेन्नई की पत्र संध्या रविशंकर की यह पुस्तक हार्पर कॉलिन्स ने प्रकाशित की है। पुस्तक उनके बचपन और राजनीतिक संघर्ष पर प्रकाश डालती है। पुस्तक में तमिल आंदोलन, करुणानिधि का लिट्टे जैसे संगठन के प्रति झुकाव आदि मुद्दों पर भी प्रकाश डाला गया है।

तमिल राजनीति में योगदान
-    मुख्यमंत्री रहते हुए सामाजिक न्याय के लिए तमाम योजनाएं चलाई।
-    गरीब तबके के कल्याण के लिए कई योजनाएं चलाई।
-    द्रविड़ पहचान और तमिल भाषा के विकास के लिए काम किया।  
-    पांच बार मुख्यमंत्री रहने के दौरान तमिलनाडु के औद्योगिक विकास के लिए काफी काम किया।
-    कन्याकुमारी में तमिल कवि संत तिरुवल्लुर की विशाल प्रतिमा लगवाई।  

जीवन सफर करुणानिधि
1924 -  3 जून को नागापटट्नम के थिरुक्कुवालाई में जन्म हुआ, 7 अगस्त 2018 को चेन्नई में निधन। 

1938 हिंदी विरोधी आंदोलन में हिस्सा लिया
1942 मुरासोली पत्र का प्रकाशन आरंभ किया
1957 पहली बार विधायक बने
1961 - डीएमके कोषाध्यक्ष बने
1962 - राज्य विधानसभा में विपक्ष के उपनेता बने 
1967 पहले गैर कांग्रेसी सरकार में कैबिनेट मंत्री बने
1968 द्रमुक पार्टी के अध्यक्ष बने
1969 पहली बार मुख्यमंत्री बने
1970 - पेरिस में आयोजित तीसरे विश्व तमिल सम्मलेन में भाषण दिया
1971 अन्नामलाई विश्वविद्यालय  ने मानद डॉक्टरेट की उपाधि दी।
1987 - कुआलालम्पुर में छठे विश्व तमिल सम्मेलन में भाषण दिया
1999  - एनडीए गठबंधन का हिस्सा बने
2004 यूपीए गठबंधन का हिस्सा बने
2006 आखिरी बार मुख्यमंत्री बने


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