जय जगत पुकारे जा, सिर अमन पे वारे जा
सबके हित के वास्ते अपना सुख बिसारे जा।
प्रेम की पुकार हो,सबका सबसे प्यार हो
जीत हो जहान की क्यो किसी की हार हो। जय जगत...
न्याय का विधान हो सबका हक समान हो
सबकी अपनी हो जमीन, सबका आसमान हो। जय जगत ...
रंग भेद छोड़ दो, जात पात तोड़ दो..
मानवों की आपसी अखंड प्रीत जोड़ दो। जय जगत...
शांति की हवा चले, जग कहे बले बले
दिन उगे सनेह का रात रंज की ढले।। जय जगत...
( दुखयाल)
पर्वत की दीवार कभी क्या रोक सकी तूफ़ानों को,
लाख़ लाख़ झोपडियों मे तो छाई हुई उदासी है
– रामगोपाल दीक्षित
क्रांति है पुकारती तू सो रहा जवान है
क्रांति की तू आन है, क्रांति की तू शान है
क्रांतिका सपूत है, तू सो रहा जवान है।।
देश में है त्राहि त्राहि सुन रहा है तू पड़ा,
दीन की कराह आग, सुन रहा तू पड़ा
गांव गांव भय अशांति, उठ रहा तूफान है।।
कौन है जो दौड़ दौड़ गांव गांव जाएगा
रक्त क्रांति के जहर से देश को बचाएगा
तेरे बल पर अब भी देख, देश को गुमान है।
करवटें बदल नहीं तू अब तो आंखे खोल दे
तू निकल और एक बार इन्क्लाब बोल दे
तेरे दम से यह जमीन और आसमान है।।
छोड़ दे यह भेदभाव, तोड़ दे वह रूढ़ियां
रुढियों से बंध सकी है कब नवीन पीढ़ियां
सब मनुज समान और सबका हक समान है।।
तू बढ़ाहै जब भी तो आंधियां लजा गईं
क्रांतियां कदम कदम पे मंजिलें सजा गईं
तेरे इस सही कदम पे झुक गया आसमान है।।
मार्ग की मुसीबतों से कब रुकी जवानियां
गुग की चुनौतियोंके डर से कब झुकी जवानियां
उठा कदम बढ़ाके तेरी सांस में तूफान है।।
- रामगोपाल दीक्षित ( मुसकरा, हमीरपुर, उत्तर प्रदेश)
क्रान्ति गीत
जयप्रकाश का बिगुल बजा तो जाग उठी तरुणाई है,
तिलक लगाने तुम्हे जवानों क्रान्ति द्वार पर आई है.
आज चलेगा कौन देश से भ्रष्टाचार मिटने को ,
आज चलेगा कौन देश से भ्रष्टाचार मिटने को ,
बर्बरता से लोहा लेने,सत्ता से टकराने को.
आज देख लें कौन रचाता मौत के संग सगाई है. (तिलक लगाने..)
आज देख लें कौन रचाता मौत के संग सगाई है. (तिलक लगाने..)
पर्वत की दीवार कभी क्या रोक सकी तूफ़ानों को,
क्या बन्दूकें रोक सकेंगी बढते हुए जवानों को?
चूर – चूर हो गयी शक्ति वह , जो हमसे टकराई है .(तिलक लगाने.. )
चूर – चूर हो गयी शक्ति वह , जो हमसे टकराई है .(तिलक लगाने.. )
लाख़ लाख़ झोपडियों मे तो छाई हुई उदासी है
सत्ता – सम्पत्ति के बंगलों में हंसती पूरणमासी है.
यह सब अब ना चलने देंगे,हमने कसमें खाई हैं . (तिलक लगाने..)
यह सब अब ना चलने देंगे,हमने कसमें खाई हैं . (तिलक लगाने..)
सावधान, पद या पैसे से होना है गुमराह नही
सीने पर गोली खा कर भी निकले मुख से आह नही.
ऐसे वीर शहीदों ने ही देश की लाज बचाई है . ( तिलक लगाने..)
ऐसे वीर शहीदों ने ही देश की लाज बचाई है . ( तिलक लगाने..)
आओ कृषक , श्रमिक , नगरिकों , इंकलाब का नारा दो
कविजन ,शिक्षक , बुद्धिजीवियों अनुभव भरा सहारा दो.
फ़िर देखें हम सत्ता कितनी बर्बर है बौराई है,
फ़िर देखें हम सत्ता कितनी बर्बर है बौराई है,
तिलक लगाने तुम्हे जवानों क्रान्ति द्वार पर आई है..
– रामगोपाल दीक्षित
नवयुग ने ललकारा है।
भारत हमको प्यारा है
हम सबका यह नारा है।
आओ मिलकर गाएंगे
हम सबको अपनाएंगे
नहीं सहेंगे हम बंटवारा
सारा देश हमारा है। जोड़ो भारत...
सब दीवारें तोड़ेगे
दिल को दिल से जोड़ेंगे
लाख झांकियां चमक उठी हैं..
फिर भी एक सितारा है। जोड़ो भारत...
लहू पसीना सींचेंगे
अश्कों के बल खीचेंगे
बाहों में है उछला सागर
उसको कहां किनारा है।। जोड़ो...
तरुणाई का यह नव अभियाना
प्रेम शक्ति का यह तूफान
कहे जमाना भारत जोड़ो
यह आखिरी इशारा है। जोड़ो भारत...
( बसंत बापट )
2 comments:
Thanks for posting it. Remembered our Bhaiji
Here all other things are correct, only few things are incorrect here which are
(1) In Stanza 4 of the song it should be "धर्म" instead of the word you placed in the stanza, (2) In Stanza 5 of the song it should be "स्नेह" instead of the word you placed in the stanza,only two such changes need to happen there ASAP.
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