Saturday, 16 April 2011

कहानी ढूंढते रह जाओगे...


आजकल के टीवी धारावाहिकों में आप कहानी की दृष्टि से कुछ ढूंढना चाहें तो हो सकता है आपको निराशा हाथ लगे। पिछले कुछ सालों से यह स्थापित सत्य सा हो गया है कि किसी टीवी सीरियल की कहानी क्या होगी। या तो अमीर घर के सास बहू के झगड़े होंगे। अहंकारों का टकराव होगा। या फिर दो बिजनेस टाइकूनों की लड़ाई होगी। इसी चासनी में परोस कर स्टार प्लसजी टीवी और दूरदर्शन के मुख्य चैनल पर भी इस तरह के कथानक आगे बढ़ रहे हैं। पिछले कई सालो में ट्रेंड में कोई बदलाव भी नहीं आ रहा है। दूरदर्शन के जमाने में कई अच्छी कहानियों और उपन्यासों का टीवी धारावाहिकों के रुप में रूपांतरण हुआ। पर यह काम किसी सेटेलाइट चैनल ने नहीं किया।

एक दो अपवाद को छोड़ दें तो हालात सास बहू के आसपास ही हैं। अभी हाल में स्टार समूह ने पृथ्वीराज चौहान पर पीरियड धारावहिक शुरू करने का जोखिम उठाया है।
ऋतुपर्णो घोष की मर्मस्पर्शी फिल्म रेनकोट में दो प्रेमी सालों बाद मिलते हैं तो प्रेमिका पूछती कि क्या कर रहे हो। प्रेमी बताता है कि टीवी पर धारावाहिक बना रहा हूं। तब प्रेमिका उससे पूछती है कहानी क्या होगी। तब प्रेमी बताता है कि सास बहू तो प्रेमिका कहती है नहीं यह विषय को सड़ चुका है। वहीं बिजनेस टाइकूनों की कहानी पर भी वह कहती है कि धारावाहिक मत बनाओ। तब वह मित्र को सलाह देती है। ऐसी कहानी क्यों नहीं लिखते कि दो लोग बचपन में प्यार करते हैं पर प्रेमिका की शादी कहीं और हो जाती है। नई जगह में जाकर वह खुश नहीं है।

आखिर प्रेम कहां है....
अगर आप आजकल के टीवी धारावाहिकों में प्रेम का तत्व ढूंढना शुरू करें तो शायद ही कहीं कोई प्रेम करता हुआ मिले। टीवी पर दिखाई जाने वाली कहानियों इंस्टेंट प्रेम होता है। प्रेम में समर्पण की भावना कम दिखाई देती है। साजिश का पहलू ज्यादा होता है। हर चरित्र किसी न किसी के खिलाफ साजिश करता हुआ नजर आता है। चाहे उपन्यास हो या पुरानी फिल्में जब हम वहां दो लोगों को प्रेम करते हुए देखते हैं तो प्रेमी प्रेमिका एक दूसरे के लिए त्याग करते हुए नजर आते हैं। पर टीवी धारावाहिकों कहानियों में होने वाले प्रेम में बाजारवाद घुस आया है। यहां उपहारों का लेनदेन और अपेक्षाएं ज्यादा बढ़ गई हैं। पति पत्नी या प्रेमी प्रेमिका एक दूसरे से कुछ प्राप्त करना चाहते हैं जो भौतिक स्वरूप में होता है। यह वास्तव में प्रेम का विकृत रूप है जो घर घर में रिश्तों में जह घोल रहा है।
समाज पर प्रभाव
जाहिर है कि सिनेमा हो या टीवी इन माध्यमों पर दिखाए जाने वाली कहानियों का समाज पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। टीवी धारावाहिक भी समाज पर प्रबाव डाल रहे हैं। घरों में रिश्तों में टकराव बढ़ने लगा है। पर रिश्ते को उपहारों के तराजू में तौल कर देखा जाने लगा है। पत्नी पति से बेटा बाप से बहन भाई से उपहारों की उम्मीद लगाए बैठी है। जो जितना महंगा उपहार देता है उस रिश्ते को उतना ही बड़ा मांगा जाता है। रिश्तेदारों नातेदारों के संबंधों के बीच भौतिकवाद बढ़ गया है। इससे परिवारों में टूटन और बिखराव की स्थिति बढ़ने लगी है। खासकर महिलाओं और बच्चों के मानस पटल पर तो इन टीवी धारावाहिकों का असर बहुत घातक है।
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-विद्युत प्रकाश 
vidyutp@gmail.com


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