सवाल ये
उठता है कि ये टीवी धारावाहिक समाज को कहां ले जाएंगे। जब आप टीवी पर कोई
धारावाहिक देख रहे होते हैं तो आपको पता नहीं होता है कि इसके कहानी की परिणति
क्या होने वाली है। स्टार प्लस पर कई धारावाहिक सालों से चल रहे हैं और उनकी कहानी
कितनी आगे बढ़ी है। उस कहानी ने समाज को क्या संदेश दिया है यह सब कुछ गुनने लगें
तो निराशा ही हाथ लगेगी। वर्तमान परिवेश में टीवी के अभिननेताओं के पास भी
धारावाहिक में अभिनय करने के नाम पर कुछ नहीं होता। सिवाय की डिजाइनर कपड़ों को
पहनकर कुछ चलताउ संवाद बोलने के।
टीवी पर कई
धरावाहिकों में गंभीर भूमिकाएं कर चुके अभिनेता सचिन खेडेकर का कहना है कि अब टीवी
धारावाहिकों की कहानी ऊंगली पड़ आगे बढ़ती है। कहानी के नाम पर उसमें कुछ भी पहले
से तय नहीं होता है। किसी भी टीवी धारावाहिक की टीआरपी को देखकर ही उसकी कहानी को
आगे बढ़ाया जाता है। अगर टीआरपी ठीक चल रही है तो कहानी को किसी भी तरह आगे बढ़ाते
रहो लोग टीवी धारावाहिक को पसंद करते रहेंगे। सचिन कहते हैं कि एक अच्छे अभिनेता
के लिए इसमें करने लायक कुछ खास नहीं बचा है। पर हां जिस कलाकार को कुछ
धारावाहिकों में लगातार भूमिका मिल रही है वह अच्छे पैसे जरूर बना रहा है। पर एक
अच्छे अभिनेता को इन धारावाहिकों में काम करके अभिनय के नाम पर कोई संतुष्टि नहीं
मिल पा रही है। बतौर अभिनेता अगर उसे कोई रोल आफर होता है तो वह कर ही लेता है
क्योंकि जीने के लिए रूपया चाहिए। साथ ही काम करते रहने से ही इंडस्ट्री में पहचान
बनी रहती है।
कई टीवी
चैनलों पर ढेर सारे धारावाहिक बनाने वाली एकता कपूर कई साल पहले दूरदर्शन पर एक
टीवी धारावाहिक लेकर आई थीं औरत। यह तीन बहनों की कहानी थी। जब इन पंक्तियों के
लेखक ने एकता कपूर से पूछा कि धारावाहिक का अंत कैसा होगा तो उन्होंने कहा कि हमने
इसके अंत के बारे में नहीं सोचा। हर एपीसोड के प्रसारण के बाद दर्शकों के जो पत्र
आएंगे उसके अनुसार ही धारावाहिक की कहानी को आगे बढ़ाया जाएगा। यानी धारावाहिक के
लिए किसी कहानी की भी जरूरत नहीं है। बस एक सिनाप्सिस लेकर टीवी धारावाहिक का
निर्माण शुरू कर दीजिए। उसके बाद दर्शकों की मांग और टीआरपी के अनुसार कहानी को
आगे बढ़ाते रहिए। यह है सीरियल के चलते रहने का मूल मंत्र।
अगर कहानी
की दृष्टि से देखें तो कोई भी कहानीकार या उपन्यासकार जब लिखना शुरू करता है तो
अपने कहानी के पात्रों के अंत के बारे में भी शुरू में ही सोच लेता है। पर टीवी पर
ऐसा नहीं होता। एक सास एक बहू सालों साल चलती रहेंगी। एक दूसरे के खिलाफ साजिश
करती रहेंगी जब तक कि दर्शक उनको पसंद करते रहें। जब कहानी को लोग पसंद करना कम कर
दें तो उसमें कोई नया ट्विस्ट डाला जाता है। कहानी अचानक 20 साल आगे चली जाती है। सारे पात्र बूढ़े
हो जाते हैं। कहानी में अचानक नए पात्र भी आ जाते हैं। अगर विष्णु शर्मा की कालजयी
कृति पंचतंत्र की तरह कोई संदेश आज के धारावाहिकों में ढूंढे तो आपको निराशा हाथ
लगेगी। पर पंचतंत्र की कथाएं डिस्कवरी चैनल के युग के बच्चों के लिए भी उतनी ही प्रासंगिक
है जितनी की वह पहले हुआ करती थी।
-विद्युत प्रकाश vidyutp@gmail.com
No comments:
Post a Comment