Tuesday 26 April 2011

सास बहू के सीरियल न देखें


हाल में दिल्ली में संपन्न आर्यसमाज अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में कुछ वक्ताओं ने आह्वान किया कि आर्य समाज के लोग टीवी के विभिन्न चैनलों पर दिखाए जाने वाले एकता कपूर के धारावाहिकों का पूरी तरह बहिष्कार करें। यह बहिष्कार सिर्फ बालाजी टेलीफिल्म्स के धारावाहिकों के लिए ही नहीं है बल्कि उस तरह के कथानक वाले तमाम धारावाहिकों के लिए जिनके कारण परिवारों पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। आर्य समाज देश की सम्मानित और अति प्राचीन संस्था है और इसके उपदेशकों ने कहीं यह महसूस किया है कि टीवी पर दोपहर में दिखाए जाने वाले ये धारावाहिक कहीं न कहीं समाज पर बहुत बुरा प्रभाव डाल रहे हैं।
क्या वाकई सास बहू के इन धारावाहिकों ने देश के लाखों परिवारों पर बुरा प्रभाव डाला है। अगर हम इस विषय पर सूक्ष्मता से विचार करें तो पाएंगे कि महानगरों व कस्बों में जहां तक केबल टीवी का प्रसार है सचमुच इन धारावाहिकों से महिलाएं और बच्चे प्रभावित होते हैं।

मेगा धारावाहिक और परिवारअगर हम परिवार को प्रभावित करने वाले धारावाहिकों की बात करें तो हमें दूरदर्शन पर प्रसारित हुए मेगा धारावाहिक शांति और स्वाभिमान को भी याद करना चाहिए। इन धारावाहिकों ने ही सास बहू के अहंकारों की टकराहट वाले धारावाहिकों की नींव रखी। उससे पहले के दूरदर्शन धारावाहिकों में एक सोशल मैसेज था जिसका अब नितांत अभाव दिखता है। हम अगर बुनियाद और हमलोग को याद करें तो उसने मध्यमवर्गीय परिवारों को जोड़ने के संदेश दिया था। इन धारावाहिकों के लेखक मनोहर श्याम जोशी थे जो पहले एक संवेदनशील पत्रकार और कथाकार बाद में स्क्रिप्ट राइटर थे।
एकता कपूर की अगर हम बात करते हैं तो वह कोई समाज शास्त्री या विदुशी महिला नहीं हैं। वे वही सबकुछ दिखाती हैं जो बिकता है। उनके धारावाहिक की कहानियों पर विज्ञापनदाताओं का दबाव रहता है उसके अनुरूप ही उनकी कहानियों में परिवेश का चयन किया जाता है। यानी खूबसूरत सा ड्राइंग रूममहंगी साडियांसलवार सूटहीरे और सोने के गहने कारें। यानी धारावाहिक की कहानी में उत्पादों का छद्म तरीके से प्रचार भी। हालांकि अमेरिका जैसे देशों में लंबे धारावाहिकों को सोप औपेरा कहने का प्रचलन है। वहां ऐसे धारावाहिकों के स्पांसर आम तौर पर साबुन बनाने वाली कंपनियां होती थीं। इसलिए उन्हें सोप औपेरा कहते थे। पर उन धारावाहिकों में आमतौर पर परिवारों का बिखराव नहीं बल्कि परिवार कल्याण के संदेश दिए जाते थे।

कहानी का ताना बाना - एकता कपूर द्वारा निर्मित स्टार प्लस पर या दूरदर्शन सहित अन्य चैनलों पर दोपहर मे दिखाए जाने वाले धारावाहिकों की कहानी के तानाबाना पर हम चर्चा करें तो यहां हमें चेहरे जरूर सुंदर सुंदर देखने के मिलते हैं। पर सुंदर चेहेरे में फरेबी सास तो कुटिल बहू होती है। हर धारावाहिक मे कुछ विवाहेत्तर संबंध होते हैं। अगर हम सोशल मैसेज की बात करें तो यहां इसका अभाव ही होता है। हर धारावाहिक में नायक का कोई न कोई चक्कर चल रहा होता है। इन धारावाहिकों में भले ही किसी खतरनाक खलनायक का कोई रोल नहीं रहता हो पर इसके चरित्र ही एक दूसरे के खिलाफ साजिश का तानाबाना बुनते रहते हैं। धारावाहिकों की कहानी भी साजिश के आधार पर ही चलती रहती है। अधिकांश चरित्र अंदर से कुछ और और बाहर से कुछ और होते हैं। कई बार उनके संवाद के साथ वह संवाद भी चलता रहता है कि वास्तव में अंदर से क्या सोच रहे हैं।   
 --- विद्युत प्रकाश मौर्य



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