सास बहू के इन धारावाहिकों में साजिश प्रमुख पहलू है। यानी हर सीरियल
में चल रहा है कोई न कोई साजिश। अपने धरावाहिकों के प्रचार प्रसार के उद्देश्य से
स्टार प्लस ने एक धारावाहिक अलग से स्टार न्यूज पर शुरु किया है। इस धारावाहिक का
नाम ही सास बहू और साजिश रखा गया है। यानी की स्टार समूह भी मानता है कि
धारावहिकों में साजिश प्रमुख पहलू है। किसी भी धारावाहिक की स्क्रिप्ट तैयार करते
समय यह नहीं देखा जाता है कि इस धारावाहिक की कहानी से हम दर्शकों को क्या संदेश
देना चाहते हैं। अब टीवी पर संदेश देने वाले धारावाहिक बहुत कम ही हैं। अगर हम
हमलोग , बुनियाद जैसे धारावाहिकों को याद करें तो
आजकल सब टीवी पर लेफ्ट राइट लेफ्ट और जी बहन जी जैसे धारावाहिक ही हैं जो अपने साथ
कुछ संदेश लेकर चल रहे हैं। बाकी सभी धारावाहिकों में अगर कामेडी नहीं है तो वह
सास बहू और साजिश ही है।
गांव कहीं
खो गए हैं- अगर आप किसी धारावाहिक की कहानी में गांव की
पृष्ठभूमि ढूंढने निकले हों तो आपको निराशा ही मिलेगी। यहां तक की इन धारावाहिकों
में कस्बाई संस्कृति की झलक भी देखने को नहीं मिलती है। हालांकि अगर लक्षित दर्शक
समूह की बात की जाए तो इन धारावाहिकों की रेंज में अब कस्बे भी हैं। अगर डाइरेक्ट
टू होम के द्वारा पहुंच देखें तो अब सेटेलाइट चैनल गांव में भी पहुंच रहे हैं।
कुछ दिन
पहले स्टार वन पर एक धारावहिक शुरू हुआ था चांदनी यह जालंधर में पंजाबी संस्कृति
की महक से साथ आरंभ जरूर हुआ पर वह आगे जाकर मुंबई की रंगिनियों में खो गया। जी
टीवी के कुछ धारावाहिकों में आजकल गांव जरूर दिखाई दे रहैं। स्टार प्लस के सभी
धारावाहिक लगभग शहरी हैं। वहां आजकल एक ऐतिहासिक धारावाहिक पृथ्वीराज का प्रसारण
जरूर हो रहा है।
टीआरपी का
दबाव - आमतौर पर जब किसी धारावाहिक की योजना बनती
है तो उसकी कहानी को लेकर इस बात की चिंता बिल्कुल नहीं की जाती है कि वह किन
उद्देश्यों को लेकर चलेगा। सबसे पहले पायलट एपीसोड की कहानी तैयार की जाती है। कुछ
एपीसोड प्रसारण के बाद दर्शकों की प्रतिक्रिया के आधार पर कहानी को आगे बढ़ाया
जाता है। जब किसी धारावाहिक की टीआरपी गिरने लगती है विज्ञापनदाता घटने लगते हैं
तो या तो उसकी कहानी में विज्ञापनदाताओं के दबाव के अनुसार बदलाव किए जाते हैं या
फिर उस धारावाहिक को बंद भी कर दिया जाता है। एकता कपूर के बारे में तो कहा जाता
है कि वे जिस किरदार से वास्तविक जिंदगी में नाराज होती हैं उसको धारावाहिक के मूल
कहानी में या तो आउट कर देती हैं या फिर मरवा डालती हैं। यानी कहानी उनकी मरजी से
आगे बढ़ती है। यहां स्क्रिप्ट लेखक दबाव में काम करता है।
लोगों पर
प्रभाव- आर्य समाज जैसे संगठनो का दर्द है कि एकता कपूर
टाइप के धारावाहिकों से परिवार में झगड़े बढ़ रहे हैं। अदालतों में तलाक के मामले
बढ़ रहे हैं। भारतीय समाज में जहां लोग सहनशील और समझौतावादी प्रकृति के होते थे
वहीं इन धारावाहिकों को देखकर हर आदमी अपने इगो की टकराहट को खुलकर खेलना चाहता
है। इसका परिणाम है कि झगड़े बढ़ रहे हैं। यानी समाज में विखंडन की प्रवृति को
तेजी से बढ़ावा मिल रहा है। इसलिए अब कई सामाजिक संगठन इन मुद्दों पर सवाल उठा रहे
हैं तो यह कोई अचरज भरा कदम नहीं होना चाहिए। हमें इस तरह की सामाजिक विकृति से
बचने के लिए समय रहते ही कुछ सोचना होगा।
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