Sunday, 31 March 2019

बड़ौदा के दीवान की बेटी भारत छोड़ो आंदोलन में कूदीं


( महिला सांसद 18 ) जयश्री रायजी पहली लोकसभा में मुंबई से चुनाव जीत कर पहुंची। उनका जीवन स्वदेशी, महिला और बाल विकास के लिए समर्पित रहा। 1951-52 में हुए लोकसभा चुनाव में उन्हें कांग्रेस ने मुंबई के उपनगरीय लोकसभा क्षेत्र से टिकट दिया।   

बड़ौदा के दीवान की बेटी
जयश्री रायजी बड़ौदा राज्य के दीवान सर मनुभाई मेहता की बेटी थीं। उनके पिता बाद में बीकानेर राज्य के प्रधानमंत्री भी बने। उन्होंने बड़ौदा कॉलेज, बड़ौदा से स्नातक तक पढ़ाई की। मुंबई के बड़े कारोबारी घराने में विवाह के बाद वे मुंबई आ गईं। पर ऐशओआराम की जिंदगी छोड़ वे समाज सेवा में सक्रिय हो गईं। वे 1919 में बांबे प्रेसिडेंसी वूमेन काउंसिल की चेयरमैन बनीं। वे 1920 में राष्ट्रीय स्त्री सभा की सचिव बनीं।
भारत छोड़ो आंदोलन में जेल
स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रियता दिखाते हुए 1930 में उन्होंने देश सेविका संघ का नेतृत्व करते हुए विदेशी कपड़ों की होली जलाने और विदेशी शराब की दुकानों को बंद कराने में सक्रियता से हिस्सा लिया। 1939 से 1943 के बीच स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। वे भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गिरफ्तार हुईं और छह महीने जेल में भी रहीं।

स्वदेशी के प्रति समर्पण
स्वदेशी के प्रति उनका समर्पण कुछ इस कदर था कि उन्होंने कई महिला सहकारिता स्टोर को खोलवाने में सक्रिय भूमिका निभाई। स्वदेशी वस्त्रों को बढ़ावा देने के लिए मुंबई में कई प्रदर्शनियों का भी आयोजन किया। आजादी के बाद भी लगातार स्वदेशी वस्त्रों को बढ़ावा देने के लिए कार्य करती रहीं।  

दंगा पीड़ितों के लिए कार्य
भारत विभाजन के बाद देश के कई हिस्सों में हुए दंगों के बाद शांति बहाली के लिए उन्होंने कुछ समय के लिए मजिस्ट्रेट की भूमिका निभाई। दंगों के दौरान पीड़ित लोगों के पुनर्वास के लिए कोष जुटाने में भी उन्होंने सक्रियता से भागीदारी निभाई।  वे मुंबई के वनिता विश्राम प्रबंधन समिति की सदस्य भी रहीं जो विधवा आश्रम का संचालन करती थी।

शैक्षणिक संस्थाओं से जुड़ाव
जयश्री तमाम शैक्षणिक संस्थाओँ के साथ पूरी सक्रियता से जुड़ी रहीं। मुंबई यूनीवर्सिटी की सीनेट की सदस्य भी रहीं। वे देश के पहले महिला विश्वविद्यालय एसएनडीटी के सिंडिकेट की भी सदस्य रहीं। बाद में दिल्ली के लेडी इरविन कॉलेज के प्रबंधन समिति में भी रहीं। वे 1952 में इंडियन काउंसिल ऑफ चाइल्ड वेलफेयर के संस्थापक सदस्यों में रहीं। जयश्री 1950 से 1953 के बीच ऑल इंडिया वूमेंस कान्फ्रेंस की वाइस प्रेसिडेंट चुनीं गईं।

जमनालाल बजाज अवार्ड
महिला और बाल विकास के क्षेत्र में उनके जीवन पर्यंत किए गए कार्यों के लिए उन्हें 1980 में प्रतिष्ठित जमनालाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित किया गया। जयश्री का आखिरी समय मुंबई में गुजरा। सक्रिय राजनीति से अलग होने के बाद भी उन्होंने महिलाओं और बच्चों के कल्याण से जुड़ी संस्थाओं के लिए काम करना जारी रखा। उन्होने ब्रिटेन और यूरोपीय देशों का दौरा किया था।

सफरनामा
1895 में 26 अक्तूबर को उनका जन्म सूरत में हुआ।
1918 में उनका विवाह एमएन रायजी के संग हुआ।
1952 में मुंबई उपनगर से चुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंची।
1950 से 1953 के बीच ऑल इंडिया वूमेंस कान्फ्रेंस की वाइस प्रेसिडेंट चुनीं गईं।
1980   में महिला और बाल विकास के लिए जमनालाल बजाज अवार्ड मिला।
1985 में मुंबई में उनका निधन हो गया।


Wednesday, 27 March 2019

रेणु चक्रवर्ती पत्रकार निखिल चक्रवर्ती पत्नी थी संसद की प्रखर वक्ता


( महिला सांसद 17 ) रेणु चक्रवर्ती वामपंथी विचारों की देश की प्रखर महिला नेताओं में शुमार हैं। उच्च शिक्षित रेणु संसद में 15 साल तक प्रखर वक्ता और महिलाओं की आवाज बनकर रहीं। पहली लोकसभा में रेनु चक्रवर्ती पश्चिम बंगाल के बशीरहाट लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीत कर पहुंची। वे बंगाल से भाकपा के टिकट पर लगातार तीन बार लोकसभा के लिए चुनीं गईं।

महिला अधिकारों के लिए लड़ती रहीं-  
1952 और 1957 में रेणु चक्रवर्ती ने बशीरहाट से चुनाव जीता। वे 1962 में बैरकपुर से भाकपा के टिकट पर जीतीं। महिलाओं के दांपत्य अधिकारों के लिए उन्होंने संसद में और बाहर मुखर होकर लड़ाई लड़ी। दहेज प्रथा के खिलाफ संसद में उन्होंने जोरदार भाषण दिया। 1964 में कम्युनिस्ट पार्टी के विभाजन पर वे भाकपा में ही बनीं रहीं। पर वे 1967 और 1971 का चुनाव माकपा उम्मीदवार से हार गईं।

संसद की मुखर आवाज - रेणु चक्रवर्ती संसद में तमाम बहस में काफी मुखर होकर हिस्सा लेती थीं। वे वामपंथी विचारों की थीं, पर हर वर्ग के लोग उनके तर्क का लोहा मानते थे। वे लोकसभा के 15 श्रेष्ठ वक्ताओं में गिनी जाती थीं।

रजनी पामदत्त के सानिध्य में -  रेणु चक्रवर्ती का जन्म 1917 में साधन चंद्र ब्रह्मकुमारी रे के परिवार में हुआ। उनका परिवार ब्रह्म समाज से प्रभावित था। वे अपने चाचा बिधानचंद्र रे से प्रभावित थीं। उनकी स्कूली पढ़ाई लोरेटो कान्वेंट कोलकाता और उसके बाद न्यूनहेम कॉलेज, कैंब्रिज में हुई। 1938 में वे वामपंथी लेखक रजनी पामदत्त के संपर्क में आईं। छात्र जीवन में वे ब्रिटेन में भारतीय छात्रों द्वारा बनाए गए कम्युनिस्ट समूह में सक्रिय थीं। बाद में वे भाकपा की सदस्य बन गईं।

सन 42 में पत्रकार निखिल चक्रवर्ती से विवाह के बाद उनकी राजनैतिक सक्रियता और बढ़ गई। भारत आने पर कोलकाता विश्वविद्यालय में वे अंग्रेजी साहित्य पढ़ाने लगीं। कोलकाता में उन्होंने महिला आत्मरक्षा समिति का गठन किया। बाद में इस संगठन ने बंगाल के किसान आंदोलन में हिस्सा लिया। अपनी मां के साथ उन्होंने नारी सेवा संघ बनाकर महिला अधिकारों के लिए काम किया।

सफरनामा
1917 में 21 अक्तूबर को उनका जन्म हुआ।
1942 में प्रसिद्ध पत्रकार निखिल चक्रवर्ती के संग विवाह हुआ।
1952 में पहली लोकसभा में बशीरहाट चुनाव जीत कर पहुंची
1962 के चुनाव रेणु चक्रवर्ती बैरकपुर से चुनाव जीत कर संसद पहुंची।
1967 और 1971 का चुनाव माकपा उम्मीदवार से हार गईं।
1994 में उनका निधन हो गया।


Tuesday, 26 March 2019

कविगुरु टैगोर मानते थे उन्हें अपनी बेटी


( महिला सांसद 16) 
मंजुला रानी देवी- ग्वालपाड़ा (असम)
मंजुला रानी देवी दूसरी लोकसभा में असम के ग्वालपाड़ा से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत कर पहुंची। उन्हें वीणा बजाने और शास्त्रीय गायन और तैल चित्र बनाने का शौक था। कविगुरु रविंद्रनाथ टैगोर उन्हें अपनी बेटी मानते थे। टैगोर बचपन में उन्हें पढ़ाई के लिए शांतिनिकेतन ले जाना चाहते थे पर ऐसा नहीं हो सका। विवाह के बाद टैगोर का आशीर्वाद लेने शांतिनिकेतन पहुंची।
मंजुला रानी ने 1957 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और भारी मतों से जीत दर्ज की। तब असम में ग्वालापाड़ा में लोकसभा के सदस्य चुने जाते थे। इसमें वर्तमान मेघालय के गारो हिल्स के इलाके भी आते थे। आजकल ग्वालपाड़ा लोकसभा सीट नहीं रह गई है। अब इसका बड़ा हिस्सा धुबड़ी लोकसभा क्षेत्र में आता है।
पीथापुरम के राजा की बेटी
मंजुला आंध्र प्रदेश के गोदावरी जिले के पीथापुरम के महाराजा की बेटी थीं। उनका जन्म पीथापुरम में हुआ था। उनकी स्कूली पढ़ाई चर्च पार्क कान्वेंट चेन्नई में हुई। कवि गुरु रविंद्र नाथ टैगोर उनके पिता के राजभवन में मेहमान बनकर आए थे। बचपन में उनके जीवन पर टैगोर का प्रभाव पड़ा। टैगोर के प्रभाव में आकर वे कविताएं और गद्य लिखने लगीं। वैसे उन्हें फोटोग्राफी और शिकार करने का भी शौक था।
आंध्र से ब्याह कर असम पहुंची
मंजुला रानी का विवाह सिधली के राजा अजीत नारायण देब के साथ हुआ। सिधली असम के ग्वालपाड़ा जिले में एक प्रिंसले स्टेट हुआ करता था। शादी के बाद वे समाज सेवा के क्षेत्र में सक्रिय हुईं। मंजुला धुबड़ी एजुकेशन बोर्ड की अध्यक्ष बनीं। वे असम प्रदेश महिला समिति की 1952 से 1957 तक अध्यक्ष रही। वे नेशनल काउंसिल फॉर वूमेन की सदस्य रहीं। 
शरणार्थी महिलाओं के लिए काम
स्वतंत्रता के बाद उन्होंने धुबड़ी के रुपसी मे उन्होंने बांग्लादेश से आई शरणार्थी महिलाओं के पुनर्वास के लिए काम किया। उन्होंने महिलाओं के कल्याण के लिए 40केंद्रों की स्थापना करवाई। असम में बाढ़ और भूकंप के दौरान उन्होंने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया।
शिलांग में आखिरी दिन
लेखिका उमा पुरकायस्थ लिखती हैं, मंजुला रानी अपनी संसदीय पारी खत्म होने के बाद शिलांग में रहती थीं। वहां उन्होंने सिधली हाउस नाम से बंगला बनाया था जहां वे नब्बे के दशक में रहती थीं। वे शिलांग क्लब की सदस्य रहीं। अपने चित्रकार पुत्र जयंत की मृत्यु के बाद उन्होंने एक बेटी गोद ली थी।

सफरनामा
1912 में 5 जनवरी को मंजुला देवी का जन्म हुआ।
1932 में उनका विवाह सिधली के राजा के संग हुआ।
1948 में शिलांग में टैगोर की स्मृति मे सिधली हाउस खरीदा
1957 में दूसरी लोकसभा का चुनाव जीता।
1952 में उन्होंने रीडिंग, ब्रिटेन में आयोजित इंटरनेशनल कान्फ्रेंस फॉर वूमेन में हिस्सा लिया।


Monday, 25 March 2019

उमा नेहरू -अरुण नेहरु की दादी उमा संपादक और लेखिका भी थीं


( महिला सांसद - 15 ) पहली और दूसरी लोकसभा की सदस्य उमा नेहरु हिंदी की लेखिका और नारी उत्थान के लिए समर्पित चेहरा थीं। उमा नेहरु ने 1952 और 1957 में लोकसभा का चुनाव जीता और अपने जीवन के आखिरी दिनों में राज्यसभा की सदस्य रहीं। उन्होंने लोकसभा में यूपी के सीतापुर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। तब सीतापुर लखीमपुर खीरी संयुक्त लोकसभा सीट हुआ करती थी। इस क्षेत्र से पहली और दूसरी लोकसभा में दो सांसदों का निर्वाचन होता था।
नेहरु परिवार में विवाह
उमा नेहरु का जन्म आगरा में निरंजननाथ कुकु के परिवार में हुआ। उनकी स्कूली पढ़ाई कर्नाटक के हुबली के सेंट मेरी कान्वेंट में हुई। 1901 में उनका विवाह पंडित जवाहर लाल नेहरु के चचेरे भाई श्यामलाल नेहरु के साथ हुआ। उनके बेटे आनंद नेहरु थे। आनंद के बेटे अरुण नेहरु भी राजनीति में सक्रिय रहे।
यूपी विधानसभा की सदस्य बनीं
विवाह के बाद वे इलाहाबाद में सामाजिक कार्यों से जुड़ गईं। ऑल इंडिया वूमेन कांग्रेस की इलाहाबाद इकाई की स्थापना की। वे इलाहाबाद शहर कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष चुनीं गईं। वे इलाहाबाद म्युनिसिपल बोर्ड की भी सदस्य रहीं। बाद में उमा उत्तर प्रदेश विधानसभा की सदस्य भी चुनीं गईं। स्वतंत्रता के बाद वे पाकिस्तान से आने वाले शरणार्थियों के पुनर्वास कार्यक्रम में भी सक्रिय रहीं।
नारीवादी लेखिका
उमा हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू भाषा की अच्छी जानकार थीं। बीसवीं सदी की शुरुआत में उमा ने नेहरु स्त्री दर्पण नामक पत्रिका में नियमित तौर पर लिखती थीं। उनके विचार स्त्रीवादी होते थे। स्त्री दर्पण पत्रिका की संपादक रामेश्वरी नेहरु थीं। बाद में उमा ने भी स्त्री दर्पण और मर्यादा नामक पत्रिकाओं का संपादन भी किया। उमा नेहरु ने हिंदी में कुछ पुस्तकें भी लिखीं। मदर इंडिया और बिपदा उनका प्रमुख पुस्तकें हैं।
स्वतंत्रता आंदोलन में
उमा नेहरु ने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रियता से हिस्सा लिया। गांधी जी से प्रभावित होकर चरखा चलाना सीखा। उन्होंने होम रुल लीग और सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी हिस्सा लिया। उन्होने नमक सत्याग्रह में अपनी अपनी सक्रिय भागीदारी निभाई। उमा नेहरु ने आगे भारत छोडो आंदोलन में भी सक्रियता से हिस्सा लिया।
1962 का चुनाव हार गईं
सीतापुर से दो बार लोकसभा का चुनाव जीतने वाली उमा नेहरु 1962 में तीसरी लोकसभा का चुनाव सीतापुर से हार गईं। उन्हे जनसंघ के सूरज लाल वर्मा ने उन्हे पराजित कर दिया। इसके बाद कांग्रेस ने इसी साल उन्हें राज्यसभा में भेजा। 
पियानो बजाना पसंद था
उमा नेहरु को लिखने और पढ़ने के अलावा पियानो पर अंग्रेजी संगीत बजाना और बैडमिंटन खेलना भी पसंद था। खाली समय में करघा चलना, बागवानी करना और संगीत सुनना उनके शौक थे। अपने जीवन के आखिरी दिनों में वे लखनऊ में रहा करती थीं।
सफरनामा
1884 में 8 मार्च को आगरा में जन्म हुआ।
1952 और 1957 में लोकसभा का चुनाव जीता।
1962 में राज्यसभा की सदस्य चुनीं गईं।
1963 में 28 अगस्त को लखनऊ में निधन हो गया।
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Sunday, 24 March 2019

सुषमा सेन - पर्दा प्रथा खत्म करने के लिए जोरदार आवाज उठाई


(महिला सांसद 14 ) पहली लोकसभा में बिहार से दो महिला सांसद जीत कर पहुंची थीं। इनमें से एक थी भागलपुर दक्षिण से सुषमा सेन। उन्होंने बिहार में पर्दा प्रथा खत्म करने के लिए जोरदार अभियान चलाया। कैंब्रिज से शिक्षित सुषमा ने अपने राजनीतिक जीवन में बाल विवाहदहेज प्रथा और जातिवाद की समाप्ति के लिए लगातार प्रयास किए। उन्होंने पटना में तीन बाल कल्याण केंद्र खुलवाए।

भागलपुर कर्मभूमि बनी
बिहार के भागलपुर से बंगालियों का बहुत पुराना नाता रहा है। बांग्ला के प्रसिद्ध लेखक शरतचंद्र चटर्जीप्रीतीश नंदी और दादामुनि अशोक कुमार का भी इस शहर से रिश्ता रहा। सांसद सुषमा सेन भी बंगाली परिवा से ही थीं, लेकिन भागलपुर उनकी कर्मस्थली बनी। सुषमा सेन कांग्रेस की टिकट पर भागलपुर दक्षिण से जीतकर लोकसभा में पहुंची। उनके पिता कोलकाता के रहने वाले थे उनका नाम पीएन बोस था।
स्वदेशी आंदोलन में
सुषमा सेन का जन्म कोलकाता में 25 अप्रैल 1889 को हुआ था। उन्होंने लोरेटो हाउस कोलकातादार्जिलिंग और लंदन के कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की थी। उनकी शादी डॉक्टर पीके सेन से हुई। बंगाल विभाजन के बाद वे महात्मा गांधी के प्रभाव में आईं और उनके स्वदेशी आंदोलन से जुड़ गईं। उन्होंने 1910 में लंदन में मताधिकार के लिए महिलाओं के आंदोलन में भी शिरकत की। 1908-15 तक वे अघौर नारी समिति पटना की अध्यक्ष रहीं। वे चाइल्ड वेलफेयर कमेटीबिहार कौंसिल ऑफ वूमेन की भी अध्यक्ष रहीं। उन्होंने महिला अधिकार और बच्चों के लिए कई काम किए।
महिला कॉलेज की स्थापना कराई
सुषमा सेन ने भागलपुर में महिला कॉलेज की स्थापना करवाई साथ ही भागलपुर के अस्पताल में महिला वार्ड की स्थापना करवाई थी। उन्होंने बिहार में बंटवारे के बाद सिंध प्रांत से आए शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए काफी काम किया। वे नेशनल कैडेट कोर बिहार की अध्यक्ष भी रहीं।
घूमने और फोटोग्राफी का शौक
सुषमा सेन एक कुशल संगठक थीं। उन्होंने पटना में 1929 में ऑल इंडिया वूमेन कान्फ्रेंस का आयोजन करवाया था। उन्होंने कई देशों की यात्रा की थी। कला में उनकी गहरी रुचि थी और वे भारतीय और अंग्रेजी गानों की शौकीन थी। गायन और चित्रकारी का भी शौक रखती थीं। उन्हें घूमने और फोटोग्राफी करने का शौक था। खाली समय में रसोई में भी व्यंजन बनाती थीं। बाद में उन्होंने पटना के बेली रोड में अपना स्थायी निवास बनाया।
सफरनामा
1889 में 25 अप्रैल को उनका जन्म कोलकाता में हुआ।
1904 में बैरिस्टर पीके सेन के साथ उनका विवाह हुआ।
1929 में ऑल इंडिया वूमेन कान्फ्रेंस मद्रास की सदस्य बनीं।
1934 में बिहार में आए भूकंप के दौरान राहत कोष जुटाने में काम किया।
1941 में पटना म्युनिसपलिटी में चुनाव जीता।
1951 में कैंब्रिज में वर्ल्ड कांग्रेस ऑफ फेथ में शिरकत की।


Saturday, 23 March 2019

रेणुका रे - बापू की सलाह पर लंदन स्कूल ऑफ इकोनामिक्स से पढ़ाई की


( महिला सांसद 13 ) - रेणुका रे स्वतंत्रता-सेनानी , सामाजिक कार्यकर्ता के साथ दूसरी और तीसरी लोकसभा के सक्रिय सांसदों में थीं। लंदन स्कूल ऑफ इकोनामिक्स से शिक्षित रेणुका रे अपनी उच्च कोटि की सामाजिक आर्थिक समझ सांसद के तौर पर समाज कल्याण के कार्यों के लिए याद की जाती हैं।
योजना आयोग की सदस्य बनीं
दूसरी और तीसरी लोकसभा के सदस्य के तौर पर रेणुका रे ने महिलाओं और पिछड़े वर्ग के कल्याण के लिए सतत कार्य किया। 1959 में रेणुका रे की अगुवाई में समाज कल्याण और पिछड़ा वर्ग कल्याण के लिए एक समिति बनी। इस समिति की रिपोर्ट को रेणुका रे कमेटी के तौर पर जाना जाता है। वे योजना आयोग की सदस्य भी बनीं।
पद्मभूषण से सम्मानित
रेणुका रे की 1982 में आत्मकथात्मक पुस्तक आई तो भारत सरकार ने उनके कार्यों के लिए 1988 में पद्मभूषण से सम्मानित किया। वे विश्व भारती विश्वविद्यालय के शासकीय परिषद की सदस्य भी रहीं। उनपर ब्रह्म समाज का प्रभाव था। रेणुका रे के भाई सुब्रतो मुखर्जी वायु सेना के पहले एयर चीफ मार्शल बने। एक भाई प्रशांत मुखर्जी रेलवे बोर्ड के चेयरमैन बने।

महिलाओं के उत्थान के लिए समर्पित चेहरा
रेणुका के पिता सतीश चंद्र मुखर्जी आईसीएस अधिकारी और माता चारुलता मुखर्जी एक सामाजिक कार्यकर्ता थीं। 16 साल की उम्र में गांधी जी से मुलाकात के बाद उनके जीवन में बड़ा बदलाव आया। उन्होंने गांधी जी के आह्वान पर विदेशी शिक्षा का त्याग कर दिया था। बाद में माता पिता के आग्रह और गांधी जी की सलाह पर ही रेणुका ने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से बीए किया। उनके शिक्षकों में हेरॉल्ड लास्की जैसे शिक्षक शामिल थे। रेणुका का विवाह सत्येंद्रनाथ रे से हुआ।
सन 1934 में उन्होंने ऑल इंडिया वूमेन कान्फ्रेंस  में काम करते हुए भारतीय महिलाओं की स्थिति पर महत्वपूर्ण अध्ययन किया। तब उनका रिपोर्ट थी कि भारतीय महिलाएं विश्व में सर्वाधिक शोषित स्थिति में हैं। रेणुका ने भारतीय महिलाओं के लिए समान कानून की वकालत की। 

झरिया कोयला खदान का दौरा
रेणुका रे ने 1933-34 में झारखंड के झरिया के सात कोयला खदानों का दौरा किया। वहां काम कर रही महिलाओं की इतनी बुरी स्थिति थी कि उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा कि महिलाओं को इतनी हानिकारक स्थिति में काम करने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए और उनके लिए रोजगार के दूसरे विकल्प तलाशने चाहिए।

-              सफरनामा -
1904 में रेणुका रे का जन्म हुआ।
1953 में ऑल इंडिया वूमेन कान्फ्रेंस की अध्यक्ष बनीं।
1943 में केंद्रीय संविधान सभा की सदस्य चुनी गईं।
1952 से 1957 तक पश्चिम बंगाल में विधायक और राज्य में मंत्री रहीं।
1957 और 1962 में मालदा से लोकसभा के लिए चुनी गईं।
1982 में उनकी पुस्तक माई रीमिनिसेंस – सोशल डेवलपमेंट गांधी इरा एंड ऑफ्टर आई।
1997 में 93 साल की अवस्था में उनका निधन हो गया।
  


Friday, 22 March 2019

महारानी गायत्री देवी - पहला चुनाव जीत कर गिनीज बुक में नाम दर्ज कराया


( महिला सांसद -12 ) - संसद में ब्यूटी विद ब्रेन
महारानी गायत्री देवी भारतीय राजनीति में ब्यूटी विद ब्रेन वाली शख्सियत के तौर पर याद की जाती हैं। जयपुर राजघराने की महारानी की जिंदगी बेहद उतार चढ़ाव भरी रही। उन्होंने तीन बार लोकसभा का चुनाव जीता। महारानी गायत्री देवी ने 1962 में सी राजगोपालाचारी द्वारा स्थापित स्वतंत्र पार्टी की ओर से राजनीति में कदम रखा और इसी साल अपने चुनाव क्षेत्र से चुनाव जीतकर तीसरी लोकसभा की सदस्य बनीं।

कांग्रेस से हमेशा दूरी
सन 1962 में उन्होंने जयपुर से पहला चुनाव रिकार्ड मतों से जीता। उन्हें 2.46 लाख मत में से 1.93 लाख मत मिले। उनका नाम तब विश्व रिकॉर्ड के तौर पर गिनिज बुक में दर्ज हुआ। फिर वे 1967 और 1971 में भी स्वतंत्र पार्टी से जयपुर से चुनाव जीतकर संसद में पहुंची।सन 1965 में उन्हें लाल बहादुर शास्त्री द्वारा कांग्रेस में शामिल होने का न्यौता मिलाउस समय कांग्रेस सरकार ने उनके पति सवाई मानसिंह द्वितीय स्पेन में भारत के राजदूत थे। पर वे सरकार में शामिल नहीं हुईं और भैरो सिंह शेखावत के साथ जनसंघ से गठबंधन कर लिया।

सवाई मान सिंह द्वितीय से विवाह
गायत्री देवी के पिता राजकुमार जितेन्द्र नारायण कूचबिहार के युवराज के छोटे भाई थेवहीं माता बड़ौदा की राजकुमारी इंदिरा राजे थीं। उनकी शिक्षा ब्रिटेन,शांति निकेतन और स्वीटजरलैंड में हुई। गायत्री देवी 21 साल की उम्र में जयपुर के महाराजा सवाई मान सिंह (द्वितीय) क0 की तीसरी पत्नी बनकर जयपुर आईं।
इमरजेंसी में पांच माह जेल में
महारानी गायत्री देवी की इंदिरा गांधी से कभी नहीं बनी। जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी द्वारा देश में आपातकाल लगाया गया तब गायत्री देवी को भी जेल में समय बिताना पड़ा था। वह करीब पांच महीनों तक दिल्ली की तिहाड़ जेल में रही थीं। जेल में उन्हें काफी प्रताड़ना झेलनी पड़ी।

पर्दा प्रथा का विरोध
महारानीराजनेता होने के साथ वे गरीबों के प्रति रहमदिल समाज सेविका भी थीं। उन्होंने महिलाओं के लिए पर्दा प्रथा का विरोध किया। वह मानती थीं कि महिलाएं किसी मामले में पुरुषों से कम नहीं हैं। 1943 में जयपुर में उन्होंने बालिकाओं के लिए पहला स्कूल खोलवाया। वे अपने जीवनकाल में सवाई बेनीवोलेंट ट्रस्टमहारानी गायत्री देवी सैनिक कल्याण कोषसवाई मानसिंह पब्लिक स्कूल और सवाई रामसिंह कला मंदिर की अध्यक्ष रहीं।

दुनिया की 10 सुंदर महिलाओं में शुमार
विश्व स्तर की जानी मानी वोग पत्रिका द्वारा महारानी गायत्री को दुनिया की 10 सबसे खूबसूरत महिलाओं की श्रेणी में रखा था। गायत्री देवी अपने दौर की फैशन आइकन मानी जाती थी। उन्हे तैराकीघुड़सवारी और शिकार का शौक था। उनकी पोलोबैंडमिंटनटेबल टेनिस जैसे खेलों में भी रुचि थी।

अमिताभ भी थे दीवाने
जयपुर की पूर्व महारानी गायत्री देवी का निधन 29 जुलाई 2009 को हुआ, उनकेनिधन के बाद अमिताभ बच्चन ने अपने ब्लॉग में लिखा था कि “वह महारानी के बहुत बड़े दीवाने थे जिन्हें देखने वह अक्सर पोलो ग्राउंड जाया करते थे। अपने जीवन काल मे लीजेंड बन चुकी गायत्री देवी पर कई पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं। उनकी आत्मकथा ए प्रिंसेस रिमेम्बर्स का फ्रेंच समेत कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।
सफरनामा
1919 में 23 मई को लंदन में जन्म हुआ।
1940 में 9 मई को उनका विवाह सवाई मान सिंह द्वितीय से हुआ।
1962 में स्वतंत्र पार्टी से चुनाव लड़कर तीसरी लोकसभा की सदस्य बनीं।
1970 में उनके पति सवाई मान सिंह का निधन हो गया। 
1967 और 1971 में भी लोकसभा का चुनाव जीता।
1976 में उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया इसी साल उनकी आत्मकथा ए प्रिंसेस रिमेम्बर्स आई।
2009 में 29 जुलाई को उनका निधन 90 साल की उम्र में हुआ।


Thursday, 21 March 2019

विजय राजे सिंधिया- राजसी ठाठ छोड़ जनसेवा को लक्ष्य बनाया


(महिला सांसद- 11 ) राजमाता विजयराजे सिंधिया ग्वालियर राजघराने की बहू थीं। वे दूसरी लोकसभा में गुना सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर संसद में पहुंची। इसके बाद वे कुल सात बार लोकसभा का चुनाव जीतकर संसद में पहुंची। वे दो बार राज्यसभा की भी सदस्य रहीं। भारतीय राजनीति में उन्हें ऐसी महिला के रूप में याद किया जाता है जो कुशल संगठनकर्ता थीं। उन्होंने राजसी ठाठ-बाट को त्यागकर जनसेवा को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया। इमरजेंसी के दौरान वे लगभग दो साल तक भूमिगत और जेल में रहीं।
ओजस्वी वक्ता
विजयराजे की स्कूली पढ़ाई वाराणसी के एनी बेसेंट थियोसोफिकल स्कूल और लखनऊ के आईटी कॉलेज में हुई। 1942 में विवाह के बाद ग्वालियर राजघराने में आ गईं। पर आजादी के बाद पति की मृत्यु होने पर राजसी जीवन छोड़कर राजनीति में सक्रिय हुईं। आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामी राजमाता मंच पर ओजस्वी वक्ता थीं। उनकी लिखने पढने में रूचि थी। उन्होंने दो पुस्तकें लिखी हैं। अंग्रेजी में द लास्ट महारानी ऑफ ग्वालियर और हिंदी में लोकपथ से राजपथ उनकी आत्मकथात्मक पुस्तकें हैं।
राजनीतिक रसूख
उनकी लोकप्रियता का आलम था कि चाहे किसी भी दल में रहीं हों जीवन में ज्यादातर चुनाव में जीत हासिल की। साठ के दशक में राजमाता विजय राजे मध्य प्रदेश की राजनीति में ऊंचा रसूख रखती थीं। मार्च 1967 में विजयाराजे सिंधिया ने मध्य प्रदेश में कांग्रेस की द्वारका प्रसाद मिश्रा सरकार का तख्ता पलट करा दिया था और गोविंदनारायण सिंह को राज्य का नया मुख्यमंत्री बनवाया था।
कांग्रेस से जनसंघ में
विजयराजे सिंधिया ने 1957 के बाद 1962 में दूसरा लोकसभा चुनाव ग्वालियर से कांग्रेस के टिकट पर जीता। पर 1967 में वे कांग्रेस से अलग होकर गुना से स्वतंत्र पार्टी से लोकसभा का चुनाव जीतीं। इसके बाद वे जनसंघ में शामिल हो गईं। 1971 का चुनाव उन्होंने गुना से जनसंघ उम्मीदवार के तौर पर जीता।
सत्ता के बजाय संगठन पर जोर
1980 में भारतीय जनता पार्टी के गठन के बाद वे जीवन भर वे पार्टी के शीर्ष नेताओं में शामिल रहीं। वे विश्व हिंदू परिषद में भी काफी सक्रिय रहीं। अपने राजनीतिक जीवन में कभी वे कभी सत्ता पाने की आकांक्षी नहीं रहीं। इसके बजाय उन्होंने संगठन को मजबूत करने में अपना ज्यादा वक्त लगाया। उन्होंने कई बार मंत्री पद को ठुकराकर संगठन के लिए काम करना पसंद किया।
राजमाता विजय राजे का शिक्षा के क्षेत्र मे काफी योगदान रहा। उन्होंने ग्वालियर में कई शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना कराई। उनके बेटे माधवराव सिंधिया कांग्रेस के बड़े नेता रहे। उनकी बेटी वसुंधरा राजे सिंधिया राजस्थान की मुख्यमंत्री बनीं। एक और बेटी यशोधरा राजे भी राजनीति में सक्रिय हैं।

सफरनामा
1919 में 12 अक्तूबर को सागर में जन्म हुआ।
1941 में 21 फरवरी को जीवाजी राव सिंधिया से विवाह हुआ।  
1957 में दूसरी लोकसभा के लिए गुना से कांग्रेस के टिकट पर चुनी गईं।
1962 में तीसरी लोकसभा में चुनीं गईं।
1971 में पांचवी लोकसभा में चुनी गईं।
1975 में इमरजेंसी के दौरान 19 महीने तिहाड़ जेल में रहीं।
1978 में राज्यसभा की सदस्य चुनी गईं।
1980 में इंदिरा गांधी के खिलाफ रायबरेली से चुनाव लड़ा पर हार गईं।
1989 19961998 में भाजपा के टिकट पर लोकसभा का चुनाव जीता।
2001 में 25 जनवरी को ग्वालियर में उनका निधन हो गया।



Wednesday, 20 March 2019

अम्मू स्वामीनाथन - महिलाओं को समान अधिकार दिलाने की आवाज बनीं


(महिला सांसद- 10 ) अम्मू स्वामीनाथन 1952 में तमिलनाडु के डिंडिगुल लोकसभा से चुनाव जीतकर संसद में पहुंची। वे तमिलानाडु की तेज तर्रार गांधीवादी नेताओं में शुमार थीं। छोटी उम्र से ही महिला अधिकारों की आवाज बनीं। संविधानसभा के सदस्य के तौर पर संविधान निर्माण में अपनी सक्रिय भागीदारी निभाई।  

गरीबी में गुजरा बचपन
अमाकुटी स्वामीनाथन का जन्म केरल के पालघाट जिले के समान्य परिवार में हुआ था। वे 13 भाई बहनों में सबसे छोटी थीं। उनकी औपचारिक शिक्षा नहीं हुई। पिता मृत्यु के बाद माता के लिए परिवार चलाना मुश्किल हो गया तो 14 साल की उम्र में उनका विवाह उनसे 20 साल बड़े तमिल ब्राह्मण डा. सुब्रमा स्वामीनाथन से कर दिया गया। पर पति ने उन्हे घर में ट्यूटर रखकर पढाया। फिर वे फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने लगी और सामाजिक गतिविधियों में हिस्सा लेने लगीं।
स्वाधीनता आंदोलन में
पति की प्रेरणा से अम्मू स्वाधनीता आंदोलन में सक्रिय हुईं। वे तमिलनाडु में कांग्रेस का प्रमुख चेहरा बन गईं। उन्होंने एनी बेसेंट और मालती पटवर्धन के साथ वूमेन इंडिया एसोसिएशन की स्थापना की। इसका उद्देश्य कामकाजी महिलाओं के अधिकारों की हिमायत करना था। इसे राजकुमारी अमृत कौर ने पहला शुद्ध नारीवादी आंदोलन कहा था। स्वतंत्रता के बाद वे संविधान सभा की सदस्य बनाई गईं।
संसद में महिलाओं की आवाज
अम्मू उन महिलाओं में शामिल थी जिन्होंने संविधान का ड्राफ्ट तैयार करने में सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने संविधान में महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार दिए जाने की बात प्रमुखता से रखी। पहली लोकसभा के सदस्य के तौर पर अम्मू ने महिलाओं को मातृत्व संबंधी लाभ दिलाने के लिए कार्य किया। बाद में सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन की सदस्य और भारत स्काउट गाइड की अध्यक्ष बनीं।
कैप्टन लक्ष्मी सहगल और मृणालिनी साराभाई की मां
अम्मू स्वामीनाथन की चार संतानें हुईं। उनमें से एक लक्ष्मी का विवाह आजाद हिंद फौज के सेनानी प्रेम सहगल से हुआ और वे कैप्टन लक्ष्मी सहगल के नाम से जानी गईं। उनकी बेटी सुहासिनी अली हैं जो बाद प्रखर वामपंथी नेता और कानपुर से सांसद बनी। अम्मू की दूसरी बेटी मृणालिनी साराभाई हैं जो भरतनाट्यम की प्रख्यात नृत्यांगना बनीं।
छूआछूत खत्म करने के लिए
अम्मू हलांकि ब्राह्मण परिवार से आती थीं लेकिन उन्होंने समाज से छूआछूत खत्म करने के लिए जीवन भर काम किया। वे प्रथम प्रधानमंत्री नेहरु को पंडित जी कहे जाने का विरोध करती थीं, क्योंकि उनका मानना था कि इससे जातीयता की गंध आती है।

सफरनामा
1894 में 22 अप्रैल को केरल में उनका जन्म हुआ।
1908 में 14 साल की उम्र में उनका विवाह हो गया।
1917 में वूमेन इंडिया एसोशिएशन की स्थापना की।
1934 में इंडियन नेशनल कांग्रेस में सक्रिय हुईं।
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर वेलोर जेल में बंद किया गया।
1946 में संविधान सभा की सदस्य चुनी गईं।
1952 में पहली लोकसभा की सदस्य चुनीं गईं।
1959 में फेडरेशन ऑफ फिल्म सोसाइटीज की उपाध्यक्ष चुनीं गईं।
1960 में भारत स्काउट एंड गाउड की अध्यक्ष बनीं।
1978 में 4 जुलाई को पालघाट (केरल) में उनका निधन हो गया।


Tuesday, 19 March 2019

सुभद्रा जोशी- सांप्रादायिक सौहार्द को समर्पित चेहरा


( महिला सांसद 09 ) कुल चार बार लोकसभा सदस्य रहीं सुभद्रा जोशी ने तीन अलग-अलग राज्यों का संसद में प्रतिनिधित्व किया। उनका पूरा जीवन सांप्रदायिक सौहार्द के निर्माण के लिए समर्पित रहा। पहली लोकसभा में करनाल से चुनाव जीत कर संसद में पहुंची। तीसरी लोकसभा के चुनाव में उन्होंने बलरामपुर में जनसंघ उम्मीदवार अटल बिहारी वाजपेयी को पराजित किया।

तीन राज्यों से प्रतिनिधित्व
सुभद्रा जोशी ने करनाल बाद तत्कलीन पंजाब के ही अंबाला उत्तर प्रदेश के बलरामपुर और दिल्ली के चांदनी चौक से भी चुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंची। वे कुछ समय तक दिल्ली प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष भी रहीं।
सांसद के रूप में
चार साल के संसदीय कार्यकाल में उन्होंने स्पेशल मैरेज एक्ट को पास करानेबैंकों के राष्ट्रीयकरणराजाओं का प्रिवी पर्स खत्म कराने,अलीगढ़ विश्वविद्लाय सुधार अधिनियम में सक्रिय योगदान किया। अपराध प्रक्रिया संहिता ( सीआरपीसीके सुधार में भी उनकी बड़ी भूमिका रही।
सियालकोट में जन्म
सियालकोट अब पाकिस्तान ) के विशेश्वरनाथ दत्त के परिवार में जन्मी सुभद्रा जोशी ने एमए तक की पढ़ाई की। उनके पिता जयपुर राजघराने में पुलिस अधिकारी और भाई कांग्रेस के नेता थे। उनकी स्कूली पढ़ाई महाराजा स्कूल जयपुर और कन्या महाविद्यालय जालंधर में हुई।
गांधी जी का प्रभाव
लाहौर में फारमन क्रिश्चियन कॉलेज में पढ़ाई के दौरान सुभद्रा जोशी एक बार गांधी जी के वर्धा आश्रम में गईं। इसके बाद उन्होने अपना जीवन स्वतंत्रता आंदोलन को समर्पित कर दिया। छात्र जीवन में उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया। सन 42 में अंडरग्राउंड रहकर उन्होंने हमारा संग्राम पत्रिका का संपादन भी किया। उन्हें गिरफ्तार कर लाहौर सेंट्रल जेल में रखा गया।
शांति दल की स्थापना
भारत विभाजन के दौर में सौहार्द निर्माण के लिए उन्होंने गली मुहल्लों का दौरा किया और शांति दल की स्थापना की। उन्होंने पाकिस्तान से आए परिवारों के लिए दिल्ली में शिविरों के संचालन में भी सहयोग किया। अपने सांसद के काल में उन्होंने रूसजर्मनी और चेकेस्लोवाकिया जैसे देशों की यात्राएं की।
सांप्रदायिक सौहार्द को समर्पित जीवन
स्वतंत्रता के बाद 1961 में सागर में हुए दंगे के बाद सौहार्द निर्माण में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई। सुभद्रा जोशी ने अपने संसदीय कार्यकाल में अपना जीवन राष्ट्रीय एकतासांप्रदायिक सौहार्द,अल्पसंख्यकों को सामाजिक न्याय दिलानेगरीबों और दिव्यांगों के कल्याण में लगाया। दलित बच्चों की पढ़ाई के लिए दिल्ली में उन्होंने सांध्यकालीन स्कूलों की स्थापना की।

सफरनामा
1919 में 23  मार्च को सियालकोट पाकिस्तानमें एक सम्मानित परिवार में उनका जन्म हुआ।
1948 में मई में बीडी जोशी से उनका विवाह हुआ।
1952 में करनाल (तब पंजाबसे लोकसभा का पहला चुनाव जीता।
1957 में वे अंबाला लोकसभा से चुनाव जीतकर संसद पहुंची।
1962 में उन्होंने यूपी के बलरामपुर में जनसंघ के अटल बिहारी वाजपेयी को पराजित किया।
1971 में दिल्ली के चांदनी चौक से लोकसभा का चुनाव जीता।
2003 में 30 अक्तूबर को दिल्ली के राममनोहर लोहिया अस्पताल में उनका निधन हो गया।
2011 में भारत सरकार ने उनके सम्मान में रुपये का डाक टिकट जारी किया।

संजय गांधी का विरोध
इमरजेंसी के दौरान वे दिल्ली के चांदनी चौक से सांसद थीं। उन्होंने उस दौरान संजय गांधी के कई कार्यो का विरोध किया। कई बार इंदिरा गांधी से इसकी शिकायत भी की। इसके बाद वे राजनीति से हासिए पर चली गईं।

यूनियन जैक को सैल्यूट करने से इनकार
जयपुर के महाराजा गर्ल्स कॉलेज के बाद वे लाहौर के मैकलगन हाईस्कूल में पढ़ने के लिए गईं। स्कूली जीवन में उनके मन में देशभक्ति की भावना इस तरह भरी थी कि उन्होंने स्कूल के एक आयोजन में यूनियन जैक को सैल्यूट करने से इनकार कर दिया। इसके बाद उन्हें स्कूल से निलंबित कर दिया गया। फिर उन्होंने जालंधर के कन्या महाविद्यालय में आकर नामांकन कराया, जहां स्वदेशी तरीके से शिक्षा दी जाती थी।

जब बलराज साहनी पहुंचे प्रचार करने   
लोकसभा चुनाव के आरंभिक दौर में चुनाव प्रचार के लिए फिल्मी सितारों को बुलाने की परंपरा नहीं थी। पर 1962 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की उम्मीदवार सुभद्रा जोशी के प्रचार के लिए फिल्म स्टार बलराज सहनी पहुंचे। कांग्रेस ने अटल बिहारी वाजपेयी को हराने के लिए फिल्मी हस्तियों का सहारा लिया। बलरामपुर के परेड ग्राउंड में बलराज साहनी की चुनावी सभा का आयोजन किया गया थाउसमें सहनी को सुनने के लिए काफी भीड़ जुटी थी। उस छोटे से कस्बे में करीब 15 हजार लोग साहनी को सुनने के लिए आए थे।
 अपनी चुनावी सभा के बाद अभिनेता बलराज साहनी दो दिन तक बलरामपुर में रुके और कांग्रेस की उम्मीदवार सुभद्रा जोशी का प्रचार करते रहे। इतना ही नहींउस चुनाव में उन्होंने रिक्शे पर घूम-घूम कर भी कांग्रेस उम्मीदवार के लिए प्रचार किया था।
फिल्म दो बीघा जमीन के प्रदर्शन के बाद बलराज साहनी बड़े स्टार बन चुके थे। उनके प्रचार ने कमाल दिखाया। 1957 में इस सीट से चुनाव मे जीत दर्ज करने वाले अटल बिहारी वाजपेयी 1962 में कांग्रेस की सुभद्रा जोशी से महज 2052 वोट से पराजित हो गए। सुभद्रा जोशी को उस चुनाव में कुल 1 लाख 2 हजार 260 मत मिले थे जबकि अटल जी को 1 लाख 208 मत मिले। सिर्फ एक फीसदी से भी कम मतों अटल जी को हार का सामना करना पड़ा। 
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