Wednesday 20 March 2019

अम्मू स्वामीनाथन - महिलाओं को समान अधिकार दिलाने की आवाज बनीं


(महिला सांसद- 10 ) अम्मू स्वामीनाथन 1952 में तमिलनाडु के डिंडिगुल लोकसभा से चुनाव जीतकर संसद में पहुंची। वे तमिलानाडु की तेज तर्रार गांधीवादी नेताओं में शुमार थीं। छोटी उम्र से ही महिला अधिकारों की आवाज बनीं। संविधानसभा के सदस्य के तौर पर संविधान निर्माण में अपनी सक्रिय भागीदारी निभाई।  

गरीबी में गुजरा बचपन
अमाकुटी स्वामीनाथन का जन्म केरल के पालघाट जिले के समान्य परिवार में हुआ था। वे 13 भाई बहनों में सबसे छोटी थीं। उनकी औपचारिक शिक्षा नहीं हुई। पिता मृत्यु के बाद माता के लिए परिवार चलाना मुश्किल हो गया तो 14 साल की उम्र में उनका विवाह उनसे 20 साल बड़े तमिल ब्राह्मण डा. सुब्रमा स्वामीनाथन से कर दिया गया। पर पति ने उन्हे घर में ट्यूटर रखकर पढाया। फिर वे फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने लगी और सामाजिक गतिविधियों में हिस्सा लेने लगीं।
स्वाधीनता आंदोलन में
पति की प्रेरणा से अम्मू स्वाधनीता आंदोलन में सक्रिय हुईं। वे तमिलनाडु में कांग्रेस का प्रमुख चेहरा बन गईं। उन्होंने एनी बेसेंट और मालती पटवर्धन के साथ वूमेन इंडिया एसोसिएशन की स्थापना की। इसका उद्देश्य कामकाजी महिलाओं के अधिकारों की हिमायत करना था। इसे राजकुमारी अमृत कौर ने पहला शुद्ध नारीवादी आंदोलन कहा था। स्वतंत्रता के बाद वे संविधान सभा की सदस्य बनाई गईं।
संसद में महिलाओं की आवाज
अम्मू उन महिलाओं में शामिल थी जिन्होंने संविधान का ड्राफ्ट तैयार करने में सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने संविधान में महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार दिए जाने की बात प्रमुखता से रखी। पहली लोकसभा के सदस्य के तौर पर अम्मू ने महिलाओं को मातृत्व संबंधी लाभ दिलाने के लिए कार्य किया। बाद में सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन की सदस्य और भारत स्काउट गाइड की अध्यक्ष बनीं।
कैप्टन लक्ष्मी सहगल और मृणालिनी साराभाई की मां
अम्मू स्वामीनाथन की चार संतानें हुईं। उनमें से एक लक्ष्मी का विवाह आजाद हिंद फौज के सेनानी प्रेम सहगल से हुआ और वे कैप्टन लक्ष्मी सहगल के नाम से जानी गईं। उनकी बेटी सुहासिनी अली हैं जो बाद प्रखर वामपंथी नेता और कानपुर से सांसद बनी। अम्मू की दूसरी बेटी मृणालिनी साराभाई हैं जो भरतनाट्यम की प्रख्यात नृत्यांगना बनीं।
छूआछूत खत्म करने के लिए
अम्मू हलांकि ब्राह्मण परिवार से आती थीं लेकिन उन्होंने समाज से छूआछूत खत्म करने के लिए जीवन भर काम किया। वे प्रथम प्रधानमंत्री नेहरु को पंडित जी कहे जाने का विरोध करती थीं, क्योंकि उनका मानना था कि इससे जातीयता की गंध आती है।

सफरनामा
1894 में 22 अप्रैल को केरल में उनका जन्म हुआ।
1908 में 14 साल की उम्र में उनका विवाह हो गया।
1917 में वूमेन इंडिया एसोशिएशन की स्थापना की।
1934 में इंडियन नेशनल कांग्रेस में सक्रिय हुईं।
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर वेलोर जेल में बंद किया गया।
1946 में संविधान सभा की सदस्य चुनी गईं।
1952 में पहली लोकसभा की सदस्य चुनीं गईं।
1959 में फेडरेशन ऑफ फिल्म सोसाइटीज की उपाध्यक्ष चुनीं गईं।
1960 में भारत स्काउट एंड गाउड की अध्यक्ष बनीं।
1978 में 4 जुलाई को पालघाट (केरल) में उनका निधन हो गया।


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