आजादी के
बाद से ही लोकसभा चुनाव लोकप्रिय नारों के साथ लड़े जाते रहे हैं। ये नारे काफी
सृजनात्मक विरोधी पर हमला करने वाले और सवाल खड़े करने वाले होते थे। इनका जनता पर
सीधा प्रभाव पड़ता था। आइए पुराने नारों पर नजर डालते हैं...
1952 के
पहले चुनाव में नारे लगते थे
खरो रुपयो
चांदी को, राज महात्मा गांधी को...
भले गांधी जी का निधन हो चुका था पर कांग्रेस गांधी की विरासत को ढो रही थी। लोग कांग्रेस के राज को गांधी का राज ही मानते थे।
तब जन संघ
मुख्य विरोधी पार्टी हुआ करती थी। सन साठ के दशक का नारा जनसंघ का नारा था -
जली झोपड़ी
भागे बैल, यह देखो दीपक का खेल
तब जनसंघ का
चुनाव चिन्ह दीपक था.
इस नारे का
कांग्रेस ने जवाब दिया-
इस दीपक में
तेल नहीं
सरकार बनाना
खेल नहीं
जन संघ का
एक और नारा था
हर हाथ को काम, हर खेत को पानी, हर घर में दीपक,
जनसंघ की निशानी
साठ के दशक
में कम्युनिस्ट पार्टी का नारा हुआ करता था -
देश की जनता
भूखी है, यह आजादी झूठी है...
साठ के दशक
में सोशलिस्ट नेता राम
मनोहर लोहिया ने जब नारा दिया था-
‘सोशलिस्टों ने बांधी गांठ, पिछड़े पावें सौ में
साठ’
सन 1971 में
कांग्रेस अध्यक्ष इंदिरा गांधी का नारा था
गरीबी हटाओ
इंदिरा भाषण
क अंत में कहती थीं वे कहते हैं इंदिरा हटाओ मैं कहती हूं गरीबी हटाओ.. नारा हिट
हुआ, इंदिरा गांधी वापस आईं....पर तब इसके जवाब में
विरोधियों का नारा
देखो इंदिरा
का ये खेल, खा गई राशन पी गई तेल
इस दौर में एक नारा कांग्रेस ने अंग्रेजी में भी बनाया था - वोट फॉर कॉफ एंड काउ, फारगेट ऑल अदर्स नाउ। तब कांग्रेस का चुनाव चिन्ह गाय और दूध पीता हुआ बछड़ा हुआ करता था।
इमरजेंसी के
बाद के 1977 के चुनाव से पहले खूब चुनावी नारे बने। इस दौरान नारों के स्तर में
गिरावट भी आई।
जमीन की
चकबंदी में
मकान गया
हदबंदी मे
द्वार खड़ी
औरत चिल्लाए
मेरा मरद गया
नसबंदी में
एक और नारा
नसबंदी के तीन
दलाल, इंदिरा संजय बंसीलाल
एक और नारा
जगजीवन राम की
आई आंधी, उड़ जाएगी इंदिरा गांधी
सन 1977 में
जय प्रकाश नारायण ने नारा दिया-
इंदिरा हटाओ, देश बचाओ
सन 1980 में
कांग्रेस ने इसके जवाब में नारा बनाया
इंदिरा लाओ
देश बचाओ, सोने का ये वक्त नहीं
सन 1977 में जब देश में जनता पार्टी का शासन आया तो राजनीति में गंदे नारों की बाढ़ आ गई। जीत के जश्न में अघाए जनता पार्टी के लोगों ने कांग्रेस के लिए एक से बढ़कर एक गंदे नारे बनाए। इनमें से तमाम नारे जाति सूचक और अपमान जनक भी थे। पर उनके उन्माद भरे नारों का दौर जल्द ही चला गया।
सन 1978 में इंदिरा गांधी ने कर्नाटक के चिकमंगलूर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा। इस चुनाव में कांग्रेस ने नारा दिया - एक शेरनी सौ लंगूर, चिकमंगलूर, चिकमंगलूर। ये नारा हिट हुआ और इंदिरा गांधी ने चिकमंगलूर से जीतकर शानदार वापसी की।
साल 1980
में कांग्रेस पार्टी का चुनाव चिन्हा था हाथ. कांग्रेस से लिए हिंदी के कवि
श्रीकांत वर्मा ने नारा लिखा-
न जात पर न
पात पर
इंदिरा जी की
बात पर
मुहर लगेगी
हाथ पर
सन 84 में
इंदिरा गांधी की शहादत के बाद कांग्रेस का नारा था
जब तक सूरज
चांद रहेगा
इंदिरा तेरा
नाम रहेगा।
कुछ नारे व्यक्तिवादी भी बने। 1989 में
वीपी सिंह के लिए नारे लगे
राजा नहीं
फकीर है, देश की तकदीर है...
चुनाव में
नारे तो 1990 के बाद भी बनते रहे हैं पर उनमें पहले जैसी बात नजर नहीं आती।
सन 1999 में भाजपा ने नारा दिया - अबकी बारी अटल बिहारी। सबको देखा बार बार हमको देखो एक बार। ये नारे भी लोगों की जुबां पर चढ़ गए।
- विद्युत प्रकाश मौर्य - Email- vidyutp@gmail.com
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