Wednesday, 27 March 2019

रेणु चक्रवर्ती पत्रकार निखिल चक्रवर्ती पत्नी थी संसद की प्रखर वक्ता


( महिला सांसद 17 ) रेणु चक्रवर्ती वामपंथी विचारों की देश की प्रखर महिला नेताओं में शुमार हैं। उच्च शिक्षित रेणु संसद में 15 साल तक प्रखर वक्ता और महिलाओं की आवाज बनकर रहीं। पहली लोकसभा में रेनु चक्रवर्ती पश्चिम बंगाल के बशीरहाट लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीत कर पहुंची। वे बंगाल से भाकपा के टिकट पर लगातार तीन बार लोकसभा के लिए चुनीं गईं।

महिला अधिकारों के लिए लड़ती रहीं-  
1952 और 1957 में रेणु चक्रवर्ती ने बशीरहाट से चुनाव जीता। वे 1962 में बैरकपुर से भाकपा के टिकट पर जीतीं। महिलाओं के दांपत्य अधिकारों के लिए उन्होंने संसद में और बाहर मुखर होकर लड़ाई लड़ी। दहेज प्रथा के खिलाफ संसद में उन्होंने जोरदार भाषण दिया। 1964 में कम्युनिस्ट पार्टी के विभाजन पर वे भाकपा में ही बनीं रहीं। पर वे 1967 और 1971 का चुनाव माकपा उम्मीदवार से हार गईं।

संसद की मुखर आवाज - रेणु चक्रवर्ती संसद में तमाम बहस में काफी मुखर होकर हिस्सा लेती थीं। वे वामपंथी विचारों की थीं, पर हर वर्ग के लोग उनके तर्क का लोहा मानते थे। वे लोकसभा के 15 श्रेष्ठ वक्ताओं में गिनी जाती थीं।

रजनी पामदत्त के सानिध्य में -  रेणु चक्रवर्ती का जन्म 1917 में साधन चंद्र ब्रह्मकुमारी रे के परिवार में हुआ। उनका परिवार ब्रह्म समाज से प्रभावित था। वे अपने चाचा बिधानचंद्र रे से प्रभावित थीं। उनकी स्कूली पढ़ाई लोरेटो कान्वेंट कोलकाता और उसके बाद न्यूनहेम कॉलेज, कैंब्रिज में हुई। 1938 में वे वामपंथी लेखक रजनी पामदत्त के संपर्क में आईं। छात्र जीवन में वे ब्रिटेन में भारतीय छात्रों द्वारा बनाए गए कम्युनिस्ट समूह में सक्रिय थीं। बाद में वे भाकपा की सदस्य बन गईं।

सन 42 में पत्रकार निखिल चक्रवर्ती से विवाह के बाद उनकी राजनैतिक सक्रियता और बढ़ गई। भारत आने पर कोलकाता विश्वविद्यालय में वे अंग्रेजी साहित्य पढ़ाने लगीं। कोलकाता में उन्होंने महिला आत्मरक्षा समिति का गठन किया। बाद में इस संगठन ने बंगाल के किसान आंदोलन में हिस्सा लिया। अपनी मां के साथ उन्होंने नारी सेवा संघ बनाकर महिला अधिकारों के लिए काम किया।

सफरनामा
1917 में 21 अक्तूबर को उनका जन्म हुआ।
1942 में प्रसिद्ध पत्रकार निखिल चक्रवर्ती के संग विवाह हुआ।
1952 में पहली लोकसभा में बशीरहाट चुनाव जीत कर पहुंची
1962 के चुनाव रेणु चक्रवर्ती बैरकपुर से चुनाव जीत कर संसद पहुंची।
1967 और 1971 का चुनाव माकपा उम्मीदवार से हार गईं।
1994 में उनका निधन हो गया।


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