( महिला सांसद 08 ) - उत्तराखंड के टिहरी
राजपरिवार की राजमाता
कमलेंदुमति शाह पहली लोकसभा की सदस्य थीं। उन्होंने
1951 का पहला चुनाव गढवाल, बिजनौर लोकसभा क्षेत्र से
स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर जीता था। राजमाता
कमलेंदुमति शाह ने उन सांसदों में से थी जिन्होंने अपनी सतत सक्रियता से लोकसभा की
शोभा बढ़ाई।
संसद में निजी विधेयक
लाईं
राजमाता कमलेंदुमति शाह
पहली लोकसभा के काफी सक्रिय सांसदों में शामिल थीं। महिला और बाल विकास उनकी रूचि
के विषय थे। वे महिला एवं बाल संस्थाएं (लाइसेंसिंग) विधेयक-1954 संसद में लेकर आई थी। यह उनकी ओर से पेश निजी विधेयक था जिस पर चर्चा हुई।
हालांकि आजकल संसद में निजी विधेयकों की परंपरा कम हो गई है।
कांग्रेस उम्मीदवार को
पराजित किया
टिहरी रियासत के इतिहास
के जानकार महिपाल सिंह नेगी बताते हैं कि 1949 में टिहरी का भारतीय संघ मे विलय के
बाद तत्कालीन राजा नरेंद्र शाह की मृत्यु हो गई। तबराजघराने के सलाहकारों ने राजा
के उत्तराधिकारी मानवेंद्र शाह को चुनाव लड़ने की सलाह दी। लेकिन मानवेंद्र शाह का
पर्चा खारिज हो गया। इसके बाद रानी कमलेंदुमति शाह को निर्दलीय चुनाव मैदान में
उतारा गया। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी कृष्णा सिंह को13,982 मतों से पराजित कर जीत दर्ज की।
शिक्षा जगत में योगदान
कमलेंदुमति की शिक्षा
राजमहल में ही हुई थी। पर उन्हें हिंदी अंग्रेजी और फ्रेंच का अच्छा ज्ञान था।
महाराजा नरेंद्रशाह ट्रस्ट की स्थापना की। राज्य की अनाथ, बेसहारा
और विधवा महिलाओं के लिए स्कूल खोला। अन्धे और वृद्धों के लिए अंध और वृद्ध
विद्यालय की स्थापना की। बालिकाओं की शिक्षा के लिए माध्यमिक विद्यालय और
महाविद्यालय खुलवाए। टिहरी में एक शानदार भवन का निर्माण कर तत्कालीन राष्ट्रपति
डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन से भवन का उद्घाटन करवाया। उनकी सारी शैक्षणिक और
सामाजिक गतिविधियां इसी भवन से संचालित की जाती थीं।
टिहरी के विकास की
चिंता
राजमाता कमलेन्दुमति
सरकार द्वारा टिहरी की उपेक्षा पर चिन्ता रहती थी। अकालग्रस्त गढ़वाल में
ज्वार-बाजरा भेजने पर उन्होंने अपना विरोध दर्ज कराया और घटिया अनाज की आपूर्ति
बंद करवाई। वे गढ़वाली भाषा की हिमायती थीं। किसी के गढ़वाली होते हुए भी हिंदी
में बात करने वालों से वह नाराज हो जाती थीं।
बांध का विरोध
प्रारंभ से ही राजमाता
ने टिहरी में गंगा नदी पर बांध बनाए जाने का विरोध किया था। वे नदियों पर बड़े
बांध विरोधी थीं। खेल में क्रिकेट में उनकी रूचि थी। वे क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया की
सदस्य रहीं। जीवन के आखिरी दिनों में वे नरेंद्र नगर के राजमहल में रहती थीं।
सफरनामा
1903 में 20 मार्च को
हिमाचल प्रदेश के क्योंथल राजघराने में जन्म हुआ।
1916 में टेहरी के
महाराजा सर नरेंद्र शाह से उनका विवाह हुआ।
1952 में टिहरी
गढ़वाल-बिजनौर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीतकर संसद में पहुंची।
1958 में उनके कार्यों
के लिए भारत सरकार ने पद्मभूषण से सम्मानित किया।
1999 में 15 जुलाई को
मस्तिष्क कैंसर से उनका निधन हो गया।
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