मृणाल गोरे का नाम देश की
जानीमानी समाजवादी नेत्रियों में शुमार है। वे 1977 में मुंबई उत्तर संसद सदस्य चुनीं
गईं। वे एक सभासद, विधायक और सांसद के तौर पर लगातार गरीबों के लिए संघर्ष करती
रहीं। मुंबई में पानीवाली बाई के रूप में चर्चित थीं। मृणाल महान महिला सामाजिक
कार्यकर्ताओं में से एक थीं और जीवन पर्यंत गरीबों और समाज के वंचित वर्ग के
अधिकारों के लिए संघर्ष करती रहीं।
झुग्गी वालों को पानी का कनेक्शन दिलवाया
महाराष्ट्र में समाजवादी आंदोलन की आखिरी स्तंभ मानी जाने वाली मृणाल ने
स्थानीय प्रशासन के साथ लड़ाई लड़कर झुग्गी बस्तियों को पानी का कनेक्शन दिलवाया
था। इसके बाद से लोग उन्हें पानीवाली बाई के नाम से पुकारने लगे।
वे 1961 में पहली
बार स्थानीय निकाय चुनाव लड़ी और जीत हासिल की। वर्ष 1964 में पानी के लिए हुए संघर्ष
में 11 लोगों की मौत होने के बाद
उन्होंने झुग्गी बस्तियों में पानी की आपूर्ति के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया था। वे
1972 में सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर बड़े अंतर से चुनाव जीतकर विधायक चुनीं गईं।
1977 में मुंबई उत्तर से बड़ी जीत
इमरजेंसी के दौरान 18 महीने
तक मृणाल गोरे अंडरग्राउंड रहीं। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा देश में लागू
आपातकाल की समाप्ति के बाद वर्ष 1977 में हुए आम चुनाव में मृणाल ने मुंबई उत्तर से भारतीय लोकदल
के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा था और भारी मतों से निर्वाचित हुईं। उन्हें 65 फीसदी
वोट मिले जबकि कांग्रेस उम्मीदवार को महज 35 फीसदी। उन दिनों महाराष्ट्र में एक
नारा प्रचलित हुआ था-पानीवाली बाई दिल्ली में,
दिल्लीवाली बाई पानी
में।
मंत्री बनने से इनकार किया
मृणाल गोरे लोकसभा में प्रखर वक्ता थीं।
मोरारजी सरकार में उन्होंने स्वास्थ्य मंत्री बनने से इनकार कर दिया क्योंकि वे
सत्ता पक्ष में रहकर भी जनता से जुड़े मुद्दे उठाना चाहती थीं। लोकसभा में
कार्यवाही के दौरान श्रीमती गोरे ने विभिन्न बहसों में जो प्रगतिशील विचार व्यक्त
किए उन्हें और उनके योगदान को लम्बे समय तक याद रखा जाएगा।
सशक्त विपक्ष की भूमिका में
मृणाल ने विधायक और विधान पार्षद के रूप में वर्षो अपने राज्य की सेवा की थी। 1987 से 1989 के बीच महाराष्ट्र विधानसभा में उन्होंने सशक्त विपक्ष की भूमिका
निभाई। इस दौरान उन्होंने मुंबई की कीमती जमीन बिल्डरों को दिए जाने का विरोध
किया। उन्होंने जन्म से पूर्व लिंग परीक्षण के खिलाफ आंदोलन चलाया था जिसपर सरकार
ने 1986 में कानून बनाया। महाराष्ट्र में उन्होंने अहिल्या दांडेकर और प्रमिला
दंडवते के साथ मिलकर कई आंदोलनों का नेतृत्व किया।
सन 1928 में 24 जून को
मृणाल मोहिले का जन्म एक मराठी कायस्थ परिवार में हुआ। मेडिकल की पढ़ाई के दौरान
ही वे कांग्रेस के सहयोगी संगठन राष्ट्रीय सेवा दल में शामिल हो गईं। उन्होंने सामाजिक
कार्यकर्ता केशव गोरे संग अंतरजातीय विवाह कर मिसाल पेश की। गरीबों और दबे कुचले
लोगें की सेवा के लिए डॉक्टरी के कैरियर को छोड़ दिया। वे गोवा मुक्ति आंदोलन में
भी सक्रिय रहीं। मुंबई के वसई में 17 जुलाई 2012 को 84 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई।
सफरनामा
1928 में 24 जून को उनका
जन्म हुआ था।
1948 में मृणाल ने सोशलिस्ट
पार्टी की सदस्यता ली।
1972 में सोशलिस्ट पार्टी
के टिकट पर मुंबई से विधायक चुनीं गईं।
1977 में मुंबई उत्तर से
लोकसभा का चुनाव जीता।
2012 में 17 जुलाई को उनका
निधन हो गया।
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