Tuesday, 30 April 2019

कमला कुमारी - पलामू से चार बार जीतकर रिकॉर्ड बनाया


( महिला सांसद - 47 ) कमला कुमारी चौथी लोकसभा में 1967 में पलामू से चुनाव जीतकर संसद में पहुंची थीं। पलामू संसदीय सीट से सबसे अधिक चार बार चुनाव जीतने का रिकॉर्ड कमला कुमारी के नाम है। वे केंद्र सरकार में मंत्री भी रहीं। उनका जीवन दलितों के उत्थान और सांप्रदायिक सदभाव के लिए समर्पित रहा।

चार बार संसद में
पलामू सीट 1967 में अनुसूचित जाति के उम्मीदवार के लिए सुरक्षित की गई थी। उस समय कांग्रेस ने कमला कुमारी को प्रत्याशी बनाया। वे 1967, 1972 यहां से चुनाव जीतीं। 1967 में उन्होंने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी जे राम को लगभग 41 हजार से अधिक मतों से और 1971 में भारतीय जनसंघ के रामदेव राम को 34 हजार से अधिक मतों से हराया था।  पर 1977 में कांग्रेस विरोधी लहर में उन्हें कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी के उम्मीदवार रामदेनी राम ने पराजित कर दिया।
केंद्र सरकार में मंत्री
कमला कुमारी ने 1980 के आम चुनाव में कमला कुमारी ने शानदार वापसी करते हुए जनता पार्टी के रामदेनी राम को 45 हजार से अधिक मतों से हराकर पलामू सीट छीन ली थी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में हुए आम चुनाव में कमला कुमारी नें जनता पार्टी के प्रत्याशी सह बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री रामसुंदर दास को हराकर एक लाख 85 हजार मतों से पराजित किया।

शिक्षण से राजनीति में आईं
कमला कुमारी का जन्म 1937 में रांची में हुआ था। उनका पिता का नाम सोमार राम था। उन्होंने एमए और डिप्लोमा इन एजुकेशन तक पढ़ाई की थी। उनकी पढ़ाई रांची के वूमेंस कॉलेज और पटना के बीएनआर ट्रेनिंग कॉलेज में हुई थी। उन्होंने विवाह नहीं किया। वे गर्ल हाई स्कूल दाउदनगर गया की प्रिंसिपल बनीं।
दंगों के दौरान सदभाव के लिए कार्य
रांची में 1967 में हुए दंगों के दौरान सांप्रदायिक सदभाव बनाने में भी उन्होंने काफी सक्रियता से काम किया। राजनेता के तौर पर अनुसूचित जाति. जनजाति कल्याण और महिलाओं की समाजिक स्थिति में बदलाव के लिए उन्होने काफी काम किया। 1965 और 1966 में ऑल इंडिया दुसाध महासभा के पटना और गया हुए सम्मेलन की अध्यक्षता की।
 सहज और सरल स्वभाव
इंदिरा गांधी की कैबिनेट में 1982 में वे कृषि राज्यमंत्री बनाईं गईं। कांग्रेस संगठन में भी वे विभिन्न पदों पर रहीं। वे कई संसदीय समितियों की सदस्य भी रहीं। अपनी संसदीय पारी में उन्होंने पलामू के लिए बहुत काम किया था।
कमला कुमारी बहुत सहज और सरल स्वभाव की थीं। उन्हें बैडमिंटन, कैरम और वॉलीबॉल जैसे खेलों में रूचि थी। उन्होंने दुनिया के कई देशों का दौरा भी किया था। अपने आखिरी दिनों में वे शरतबाबू लेन रांची में रहती थीं। रांची में ही 2018 में 9 अक्तूबर को उनका निधन हो गया।
सफरनामा
1937 में 14 जनवरी को रांची में उनका जन्म हुआ था।
1967 में चौथी लोकसभा का चुनाव पलामू से जीता
19711980 और 1984 में भी जीत दर्ज की।
1982 में केंद्र सरकार में कृषि राज्य मंत्री बनाई गईं।
2018 में 9 अक्तूबर रांची में उनका निधन हो गया।
           


Monday, 29 April 2019

मोहिंदर कौर- पाकिस्तान से आए शरणार्थियों की खूब सेवा की

( महिला सांसद - 46 ) पंजाब के पटियाला राजघराने से आने वाली मोहिंदर कौर 1967 में चौथी लोकसभा में पटियाला से चुनाव जीत कर संसद में पहुंची थीं। वे देश की आखिरी महारानी मानी जाती हैं। उन्होंने 1947 के बाद पाकिस्तान से आए शरणार्थियों की खूब सेवा की। पटियाला राज परिवार को सिख धर्म से जोड़े रखने में उनकी अहम भूमिका मानी जाती है।
पहले राज्यसभा फिर लोकसभा में
मोहिंदर कौर के पति और पटियाला के महाराजा यादविंदर सिंह चाहते थे कि वह राजनीति में सक्रिय हों,  लेकिन इंदिरा गांधी उन्हें राजदूत बनाकर विदेश में ही व्यस्त रखती रहीं। मोहिंदर कौर ने अपने पति के स्थान पर 1964 में राजनीति में कदम रखा। वह 1964 से 1967 तक कांग्रेस सदस्य के तौर पर राज्यसभा की सदस्य रहीं। 1967 में वह चौथी लोकसभा के लिए चुनी गईं और 1971 तक उसकी सदस्य रहीं। पर 1971 में मोहिंदर कौर को दुबारा चुनाव लड़ने के लिए टिकट नहीं दिया गया।
शाही महल के द्वार शरणार्थियों के लिए खोले
मोहिंदर कौर ने 1947 के बाद पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थियों के लिए पटियाला के शाही महल के दरवाजे खोल दिए थे। उनके लिए वे खुद लंगर पकाती थीं। वे शरणार्थियों की सेवा नंगे पांव सिर ढकर कर करती थीं। मेडिकल कैंपों की निगरानी भी उन्होंने खुद की। उन्होंने शरणार्थियों के पुनर्वास में भी काफी मदद की।
यादविंदर सिंह के विवाह
मोहिंदर कौर का जन्म 14 सितंबर 1922 को लुधियाना में हुआ था। मोहिंदर कौर के पिता हरचंद सिंह जेजी कांग्रेस के सहयोगी संगठन रियासत प्रजा मंडल से जुड़े रहे थे। 16 साल की उम्र में उनका विवाह पटियाला के महराजा यादविंदर सिंह से हुआ। उनके पति महाराजा यादविंदर सिंह आखिरी दिनों में नीदरलैंड के एंबेसडर थे। 1974 में हेग में महाराजा यादविंदर सिंह की मृत्यु हो गई।
जनता पार्टी से फिर राज्यसभा में

इमरजेंसी के बाद 1977 में मोहिंदर कौर इंदिरा गांधी की विरोधी हो गईं। उन्होंने उस दौर में जनता पार्टी की सदस्यता ले ली। जनता पार्टी में उन्हें महासचिव बनाया गया। वह जनता पार्टी से 1978 से 1984 तक राज्य सभा की सदस्य रहीं।
पति की मृत्यु के बाद सादा जीवन
सन 1974 में पति महाराजा यादविंदर सिंह की मृत्यु के बाद मोहिंदर कौर ने सादा जीवन अपना लिया। उन्होंने गहनेसिल्क की साड़ियां आदि पहनना छोड़ दियावह सिर्फ सफेद और नीले रंग के कपड़े पहनने लगीं। अपने आखिरी दिनों में वह सामाजिक जीवन से दूर रह कर खुद को धार्मिक कार्यों में लगाए रखती थीं। 2017 में जुलाई में महीने में 95 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई। उनके बेटे कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस पार्टी की राजनीति में सक्रिय हैं। आजकल वे पंजाब के मुख्यमंत्री हैं।
सफरनामा
1922 में 14 सितंबर को उनका जन्म हुआ।
1967 में वह चौथी लोकसभा के लिए चुनी गईं
1977 में महिंदर कौर ने जनता पार्टी ज्वाइन की।
1978 से 1984 तक राज्य सभा की सदस्य रहीं।
2017 में 24 जुलाई को उनका पटियाला में निधन हो गया।


Sunday, 28 April 2019

इंदिरा गांधी -प्रधानमंत्री बनने के बाद जीता पहला लोकसभा चुनाव


( महिला सांसद - 45 ) इंदिरा गांधी भारत की तीसरी और देश की पहली महिला प्रधानमंत्री थीं। देश की राजनीति में उनका कार्यकाल इंदिरा युग के नाम से जाना जाता है। पाकिस्तान के साथ निर्णायक युद्ध में सफलता के बाद बांग्लादेश का निर्माण, देसी रियासतों का प्रिवी पर्स खत्म करना, बैंकों का राष्ट्रीयकरण जैसे कई बड़े कार्य उनके नाम हैं। इंदिरा पहली बार 1967 में यूपी के रायबरेली चुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंची। इससे पहले वे 1966 में ही देश की प्रधानमंत्री की बागडोर संभाल चुकी थीं।
सत्ता में आने से पहले संगठन में काम
सत्ता में आने से पहले इंदिरा गांधी के पास कांग्रेस के संगठन में काम करने का पर्याप्त अनुभव था। 1955 में वे कांग्रेस कार्य समिति और केंद्रीय चुनाव समिति की सदस्य बनी। इंदिरा वर्ष 1959 से 1960तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं।  वे लाल बहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में 1964 से 1966 तक सूचना और प्रसारण मंत्री रहीं। शास्त्री जी के निधन के बाद जनवरी 1966 में भारत की प्रधानमंत्री बनीं।
शांति निकेतन और ऑक्सफोर्ड में पढ़ाई
इंदिरा गांधी ने विश्व भारती, शांति निकेतन, इकोले इंटरनेशनेल, जेनेवा और समरविले कॉलेज, ऑक्सफोर्ड जैसे संस्थानों से शिक्षा प्राप्त की। उन्हें विश्व भर के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों द्वारा डॉक्टरेट की उपाधि से भी सम्मानित किया गया था। उन्हें कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा विशेष योग्यता प्रमाण भी दिया गया।

स्वतंत्रता आंदोलन में
इंदिरा ने स्वतंत्रता आंदोलन में कांग्रेस के सहयोग के लिए 1930 में बच्चों के सहयोग से वानर सेना का निर्माण किया। सितंबर 1942 में उन्हें जेल में डाल दिया गया। 1947 में इन्होंने गांधी जी के मार्गदर्शन में दिल्ली के दंगा प्रभावित क्षेत्रों में कार्य किया।

गरीबी हटाओ और इमरजेंसी का दौर
सन 1971 का लोकसभा से चुनाव से पहले इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया। कांग्रेस ने इस साल सत्ता में वापसी की। इंदिरा गांधी ने रायबरेली से ही लोकसभा का चुनाव दूसरी बार जीता। पर 1975 में देश में इमरजेंसी लगाए जाने के बाद उनकी लोकप्रियता में कमी आई। 1977 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई। इंदिरा गांधी अपनी परंपरागंत सीट रायबरेली से लोकसभा का चुनाव जनता पार्टी के राजनारायण से हार गईं।

चिकमंगलूर से वापसी
सत्ता से बाहर इंदिरा गांधी ने 1978 में कर्नाटक के चिकमंगलूर से लोकसभा उप चुनाव चुनाव लड़ा और जबरदस्त जीत दर्ज की। तब वहां नारा दिया गया- एक शेरनी सौ लंगूर, चिकमंगलूर-चिकमंगलूर। सन 1980 के चुनाव में इंदिरा गांधी के समर्थन में आधी रोटी खाएंगे,इंदिरा को बुलाएंगेऔर   इंदिरा लाओ देश बचाओ, सोने का ये वक्त नहीं... जैसे नारे लगे। जनवरी 1980 में हुए सातवीं लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी ने रायबरेली (उत्तर प्रदेश) और मेडक (आंध्र प्रदेश) से जीत दर्ज की। पर उन्होंने रायबरेली से इस्तीफा दे दिया।

भारतीय राजनीति की लौह महिला
सातवीं लोकसभा में कांग्रेस की जीत के बाद इंदिरा गांधी 1980 में चौथी बार प्रधानमंत्री बनीं। सन 1984 में 31 अक्तूबर को दिल्ली के सफदरजंग स्थित उनके आवास में उनके ही दो सुरक्षा गार्डों ने गोली मार कर उनकी हत्या कर दी। वे 17 साल देश की प्रधानमंत्री रहीं। देश उन्हे मजबूत इरादे वाली लौह महिला के तौर पर याद करता है।
सफरनामा
1917 में 19 नवंबर को आनंदभवन, प्रयागराज में जन्म हुआ।
1942 में 26 मार्च को फिरोज गांधी के संग विवाह हुआ।
1966 में 24 जनवरी को भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं।
1967 में रायबरेली से पहली बार लोकसभा का चुनाव जीता।
1971 में रायबरेली, 1978 में चिकमंगलूर, 1980 में मेडक से चुनाव जीता।
1984 में 31 अक्तूबर को दिल्ली में उनकी हत्या हुई।         
 ( vidyutp@gmail.com ) 

Saturday, 27 April 2019

विमलाबाई देशमुख : सबको शिक्षा के लिए दर्जनों शिक्षण संस्थान खोले

(महिला सांसद - 44 ) 
विमला बाई देशमुख भारत के पहले कृषि मंत्री पंजाब राव देशमुख की पत्नी थीं। पर एक समाज-सेविका के तौर पर उनकी अलग पहचान थी। उन्होंने सभी तबके लोगों को शिक्षित करने के लिए विदर्भ क्षेत्र में दर्जनों शिक्षण संस्थानों की स्थापना कराई। देश के पहले कृषि मंत्री पंजाब राव देशमुख के निधन के बाद हुए उप चुनाव में 1965 में अमरावती से लोकसभा का चुनाव जीतकर वे संसद में पहुंची।
पंजाब राव देशमुख से अंतरजातीय विवाह
विमलाबाई के पिता का नाम जयराम नाना वैद्य था। उन्होंने बीए और एलएलबी की पढ़ाई की थी। वे विदर्भ क्षेत्र से एलएलबी करने वाली पहली महिला थीं। विमला अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद कई सामाजिक संगठनों के साथ जुड़ कर लोककल्याण के कार्य कर रही थीं। सन 1927 में 26 नवंबर को सत्यशोधक समाज की रीति से उनका पंजाब राव देशमुख के संग विवाह मुंबई में हुआ। यह अंतरजातीय विवाह था जो उस समय के समाज में क्रांतिकारी कदम था। उनके पति पंजाबराव लंदन ने कानून की डिग्री लेकर आए थे।
लोकसभा और राज्यसभा में
विमलाबाई देशमुख जून 1965 से मार्च 1967 तक लोकसभा की सदस्य रहीं। लोकसभा उपचुनाव उन्होंने भारी मतों के अंतर से जीता था। हालांकि लोकसभा में उनका कार्यकाल छोटा रहा पर इस दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण चर्चाओं में हिस्सा लिया। इसके बाद विमलाबाई देशमुख राज्यसभा के लिए भी चुनीं गई। वे 1967 से 1972 तक संसद के उच्च सदन की भी सदस्य रहीं।
कई दर्जन शिक्षण संस्थान खोले
विमलाबाई देशमुख और उनके पति ने मिलकर महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में ब्रिटिशकालीन भारत में शिक्षा के क्षेत्र में अलख जगाने का काम किया। सबको शिक्षा देने के लिए उन लोगों ने 1931 में शिवाजी एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना की थी। इस संस्था ने 1968 तक विदर्भ इलाके में 28 कॉलेज, 45 स्कूल और 14 जन सेवा संस्थान खोले थे। इसके साथ ही उनकी राष्ट्रीय कृषक लीग और पिछड़ा वर्ग संगठन की स्थापना में भी उनका योगदान रहा।
महिलाओं और पिछड़ों के लिए कल्याणकारी कार्य
विमलाबाई देशमुख अपने जीवन के आखिरी दिनों में में भी सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय रहीं। उन्होंने महिलाओं, पिछड़ों और दलितों के उत्थान के कार्यक्रमों में सक्रियता से भागीदारी निभाई। उनके जीवन पर डॉक्टर बाबा साहेब आंबेडकर का काफी प्रभाव था। उन्होंने जीजामाता महिला मंडल, ग्रामीण महिला मंडल की स्थापना की थी। उनके कार्यों के लिए उन्हें अन्नपूर्णा सम्मान दिया गया था। उनका निधन 1998 में अमरावती में हो गया। उनके निधन के बाद अमरावती में विमलाबाई देशमुख के नाम पर एक कॉलेज की स्थापना की गई है। स्थानीय लोग उन्हे मातोश्री कहकर सम्मान देते हैं।
सफरनामा
1906 में 24 अक्तूबर को उनका जन्म हुआ।
1927 में पंजाब राव देशमुख के संग उनका विवाह हुआ।
1931 में शिवाजी एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना की।
1965 में लोकसभा का उपचुनाव जीता।
1967 में राज्यसभा की सदस्य बनीं।
1998 में 25 मार्च को उनका निधन हो गया।
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Friday, 26 April 2019

जोहरा बेन चावडा - वंचित समाज के लिए समर्पित रहा सारा जीवन

(महिला सांसद - 43 )  
जोहरा बेन चावडा ने बापू के सानिध्य में सात साल गुजारे थे। उनका पूरा जीवन वंचित समाज की सेवा के लिए समर्पित रहा। वे तीसरी लोकसभा 1962 में गुजरात के बनासकांठा से लोकसभा चुनाव जीतकर संसद में पहुंची थीं। जोहराबेन गांधीवादी मूल्यों में आस्था रखती थीं और सांसद के तौर पर भी उनका जीवन अत्यंत सादगी भरा था।  
नर्सिंग का कोर्स कर समाज सेवा में
जोहराबेन अकरबभाई चावड़ा का जन्म 1923 में दो सितंबर को साबरकांठा जिले में परंतिज शहर में हुआ था। उनके पिता जामियातखान उमरखान पठान शहर के सम्मानित व्यक्ति थे। उनकी स्कूली पढ़ाई अपने शहर में ही हुई। स्कूली जीवन से ही उनकी समाज सेवा में रूचि थी। सेवा भाव के कारण ही जोहरा बेन ने वर्धा जाकर नर्सिंग का कोर्स किया।
गांधीवादी अकबरभाई से विवाह
नर्सिंग का प्रशिक्षण पूरा करने के बाद वे गुजरात विद्यापीठ में काम करने लगीं। यहीं कार्य के दौरान ही उन्होंने गांधीवादी अकबर भाई दालुमिया चावड़ा के संग विवाह किया। दरअसल अकबरभाई ब्रिटिश पुलिस में थे। उनकी ड्यूटी गुजरात विद्यापीठ में जासूसी के लिए लगी थी। इसी दौरान वे गांधीजी से प्रभावित होकर पुलिस की नौकरी छोड़ गांधीवादी कार्यकर्ता हो गए। बापू की सलाह पर ही दोनों ने विवाह किया।
वंचित समाज के जीवन में बदलाव के लिए कार्य
जोहराबेन बापू के साबरमती आश्रम में सात साल तक उनके साथ आश्रम में रहीं। बापू की सलाह पर जोहराबेन और उनके पति बनासकांठा जिले के सनाली ग्राम में गए और वहां वंचित समाज के जीवन में बदलाव लाने के लिए काम करना शुरू किया। यह अति पिछड़ा इलाका था जहां भील आबादी बड़ी संख्या में थी। यहां पति-पत्नी ने मिलकर 1948 में सर्वोदय आश्रम खोला और बच्चों के पढ़ाने का कार्य शुरू किया। बाद में जोहराबेन कांग्रेस पार्टी की गतिविधियों में हिस्सा लेने लगीं। वे बनासकांठा जिला कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष भी बनीं।
भारी अंतर से जुनाव जीता
सर्वोदय आश्रम में सेवा कार्य करते हुए उनके पति अकबरभाई चावडा 1952 और 1957 में बनासकांठा से सांसद चुने गए थे। पर बनासकांठा में 1962 का लोकसभा चुनाव जोहराबेन ने लड़ा और अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी को तकरीबन दुगुने से ज्यादा मतों के अंतर से पराजित किया था। जोहराबेन के एक लाख 15 हजार मत मिले तो स्वतंत्र पार्टी के कन्हैयालाल मेहता को 60 हजार मत मिले थे।
आश्रम का पुनर्निर्माण
बाढ़ आने के कारण सनाली आश्रम तबाह हो जाने पर चावडा दंपति ने 1965 में सानाली आश्रम की फिर से स्थापना की और एक बार फिर पूरे दमखम से समाजसेवा के कार्यों में जुट गए। जोहरा बेन सेवा और सादगी की प्रतिमूर्ति थीं। एक सांसद के तौर पर भी उनके जीवन में कोई आडंबर नहीं था। उनकी रुचि खेतीबाड़ी और सेवा कार्य में थी। अपने जीवन के आखिरी दिनों में अपने आश्रम में ही रहती थीं। उनका निधन 1997 में हुआ। एक वर्ष बाद उनके पति का भी निधन हो गया।

सफरनामा
1923 में 2 सितंबर को उनका जन्म साबरकांठा जिले में हुआ।
1946 में गांधीवादी अकबरभाई चावड़ा से विवाह किया।
1948 में सानाली में सर्वोदय आश्रम की स्थापना की।
1962 में तीसरी लोकसभा का चुनाव बनासकांठा से जीता।
1997 में उनका गुजरात में निधन हो गया।
  -vidyutp@gmail.com 

Thursday, 25 April 2019

कमला चौधरी - संविधान सभा की सदस्य और कथा लेखिका


(महिला सांसद - 42 ) कमला चौधरी तीसरी लोकसभा में उत्तर प्रदेश के हापुड़ से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा का चुनाव जीतकर संसद में पहुंची। सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय कमला चौधरी स्वाधीनता आंदोलन के दौरान कई बार जेल गईं। वे संविधान सभा की सदस्य भी थीं। बहमुखी प्रतिभा की धनी कमला चौधरी अपने समय लोकप्रिय कथा लेखिका थीं।

संविधान सभा की सदस्य

साहित्यिक क्षेत्र में सक्रियता के साथ कमला चौधरी ने स्वाधीनता संग्राम में भी हिस्सा लिया। वे 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने वाली महिलाओं में थीं। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें कई बार जेल में डाला। 1946 में मेरठ में हुए कांग्रेस के 54वें सम्मेलन में कमला चौधरी ने उपाध्यक्ष बनाई गई थीं। कमला चौधरी 1947 से 1952 तक संविधान सभा की सदस्य रहीं।

कई शहरों में प्रवास 

कमला चौधरी का जन्म 22 फरवरी 1908 को लखनऊ में हुआ था। उनके पिता राय मनमोहन दयाल डिप्टी कलेक्टर थे। उनकी शिक्षा दीक्षा देश के कई अलग अलग शहरों में हुई। कमला चौधरी ने पंजाब विश्वविद्यालय से प्रभाकर की डिग्री ली थी। स्कूली जीवन से ही उनकी साहित्य में गहरी रूचि थी। वे राजस्थान के जयपुर और यूपी के मेरठ में सक्रिय रहीं।

हापुड़ से बड़ी जीत

तीसरी लोकसभा में कांग्रेस ने उन्हे हापुड़ लोकसभा क्षेत्र से टिकट दिया। कमला चौधरी ने इस चुनाव में अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी नसीम को 28 हजार से ज्यादा मतों से पराजित किया। तब हापुड़ लोकसभा में गाजियाबाद में के क्षेत्र भी आते थे। एक सांसद के तौर पर वे पांच साल लोकसभा में खूब मुखर रहीं। पर इसके बाद वे सांसद नहीं चुनीं गईं। वे उत्तर प्रदेश सोशल वेलफेयर एडवाइजरी बोर्ड की भी सदस्य रहीं।

लोकप्रिय कथा लेखिका

कमला चौधरी अपने समय की लोकप्रिय कथा लेखिका थीं। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ही उनके कई कहानी संग्रह प्रकाशित हुए। उन्माद (1934), पिकनिक (1936) यात्रा (1947), बेल पत्र और प्रसादी कमंडल। समाज की विभिन्न समस्याओं को उन्होंने अपनी कहानियों का विषय बनाया। उनका कहानी पागल निम्म जाति पर हो रहे अन्याय को रेखांकित करती है। उन्होंने हास्य व्यंग्य और प्रेरक पुस्तकें भी लिखीं। उन्होंने उमर खैय्याम की रुबाइयों का हिंदी में पद्यानुवाद भी किया था। उनका सृजन बाल साहित्य के क्षेत्र में भी था।

नारी जीवन पर बारीकी से कलम चलाई

कमला चौधरी ने अपनी कहानियों में नारी जीवन की समस्याओं का अंकन भी उन्होंने बड़ी बारीकी से किया। जाति, धर्म, संप्रदाय, वर्ग, प्रेम, घृणा, नैतिकता, आचार व्यवहार उनकी कहानियों के विषय हैं। उनकी कहानियों में मनोरंजन के साथ संदेश भी है। संसदीय पारी के बार वे अपने आखिरी दिनों में मेरठ के छीपी टैंक इलाके में रहती थीं। उनकी एक बेटी और दो बेटे हैं। उन्हें पेंटिंग करना और कविताएं लिखना भी पसंद था।

सफरनामा

1908 में 22 फरवरी कमला चौधरी का जन्म लखनऊ में हुआ था।

1927 के फरवरी महीने में जेएम चौधरी से उनका विवाह हुआ।

1946 में कांग्रेस के 54वें अधिवेशन की उपाध्यक्ष बनीं।

1947 में संविधान सभा की सदस्य बनीं।

1962 में हापुड़ लोकसभा से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीता।

1970 में उनका निधन हो गया।




Wednesday, 24 April 2019

लक्ष्मी संगम - स्वतंत्रता सेनानी जो मेडक से तीन बार सांसद चुनीं गईं

(महिला सांसद - 41 ) लक्ष्मी बाई संगम तेलंगाना के मेडक ( तब आंध्र प्रदेश) से लगातार तीन बार सांसद चुनीं गईं। वे महान स्वतंत्रता सेनानी थीं जिन्होंने साइमन कमीशन का विरोध करते हुए जेल जाना पड़ा था। उन्होंने विनोबा भावे के साथ भूदान आंदोलन में योगदान किया था। 
साइमन कमीशन का विरोध किया
छात्र जीवन में 1931 में साइमन कमीशन का विरोध करने के साथ ही लक्ष्मी बाई स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़ी। उसके बाद तो वे पूर्णकालिक सामाजिक कार्यकर्ता और स्वतंत्रता सेनानी बन गईं। वे 1931 में एक साल जेल में भी रहीं। जेल में रहते हुए उन्होंने महिलाओं के लिए अलग सेल बनाए जाने के लिए आंदोलन किया। उन्होंने 1932 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी हिस्सा लिया। उन्होंने नमक सत्याग्रह में भी हिस्सा लिया।
आंध्र प्रदेश सरकार में मंत्री
लक्ष्मी बाई को हैदराबाद प्रदेश कांग्रेस कमेटी की संयोजक बनाया गया। वे कई साल तक ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी की कार्यकारी सदस्य भी रहीं। लक्ष्मी बाई 1952 में हैदराबाद से विधानसभा की सदस्य चुनीं गईं। इसके बाद वे 1954 से 1956 के बीच आंध्र प्रदेश सरकार में शिक्षा राज्य मंत्री बनाया गया।

लगातार तीन बार सांसद
लक्ष्मीबाई संगम ने 1957 में विकराबाद से कांग्रेस के टिकट पर निर्विरोध लोकसभा का चुनाव जीता। वे 1962 में यहां से उन्होंने स्वतंत्र पार्टी के रामालू को 40 हजार मतों से पराजित किया। वे 1967 के चुनाव में मेडक से लड़ीं, यहां उन्होंने के रमैया को 84 हजार मतों से पराजित किया।
पेंटिंग की शिक्षिका
लक्ष्मी बाई संगम का जन्म तेलंगाना के रंगारेड्डी जिले के घाटकेसर में 1911 में हुआ था। उनके पिता का नाम डी रमैया था। बचपन में उनका विवाह दुर्गा प्रसाद यादव के साथ हुआ था। जिनका थोड़े समय बाद ही निधन हो गया। उनकी औपचारिक शिक्षा स्नातक तक हुई थी। उन्होंने शारदा निकेतन कॉलेज ऑफ आर्टस चेन्नई और कार्वे यूनीवर्सिटी में शिक्षा पाई। पेंटिंग में डिप्लोमा करने के बाद उन्होंने ड्राईंग शिक्षक के तौर पर नौकरी भी की।

स्कूल और अनाथालय की स्थापना की
लक्ष्मी बाई संगम आंध्र प्रदेश में तमाम सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय रहीं। उन्होंने हैदराबाद में इंदिरा सेवा सदन नाम से अनाथालय की स्थापना की। उन्होंने राधिका मेटरनिटी होम, वासु शिशु विहार हनुमंतु गुप्ता हाई स्कूल जैसे शैक्षणिक संस्थाओं की भी स्थापना की। वे हैदराबाद यादव महाजन संगठन की अध्यक्ष चुनीं गई। वे ऑल इंडिया स्टूंडेट कान्फ्रेंस हैदराबाद की उपाध्यक्ष भी रहीं। वे आंध्र युवती मंडली, हैदराबाद फूड काउंसिल में सक्रिय रहीं। वे स्टेट सोशल एडवाइजरी बोर्ड की कोषाध्यक्ष रहीं। वे आंध्र विद्या महिला संगम की 18 साल तक सदस्य रहीं।
विनोबा जी के पदयात्रा की प्रभारी
लक्ष्मीबाई आचार्य विनोबा भावे की तेलंगाना की पहली पैदल यात्रा के दौरान इस यात्रा की प्रभारी रहीं। विनोबा भावे ने अपने भूदान आंदोलन की शुरुआत आंध्र प्रदेश के पोचमपल्ली ग्राम से ही की थी। इस भूदान आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार करने में भी लक्ष्मीबाई की बड़ी भूमिका थी। वे विनोबा के भाषणों का तेलुगु में अनुवाद करती थीं। तेलंगाना के 16 गांव की 314 एकड़ जमीन दान कराने में उनकी भूमिका रही।
सफरनामा
1911 में 27 जुलाई को जन्म हुआ।
1930 में स्वतंत्रता आंदोलन में जेल गईं
1952 में विधानसभा की सदस्य चुनीं गईं।
1957, 1962 और 1967 में मेडक से लोकसभा चुनाव जीता।
1979 में उनकी कैंसर से मृत्यु हो गई।

प्रस्तुति - विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com 

Tuesday, 23 April 2019

जया बेन शाह - मंदिरों में दलितों के प्रवेश के लिए लड़ाई लड़ी


(महिला सांसद - 40 ) जयाबेन शाह बांबे प्रांत और गुजरात प्रांत से तीन बार चुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंची। उन्होंने पहला चुनाव गिरनार से और दो बार अमरेली से जीत दर्ज की थी। जयाबेन ने गुजरात में मंदिरों में दलितों के प्रवेश के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। उनका पूरा जीवन खादी के प्रचार प्रसार और बाल कल्याण को समर्पित रहा।
भारी अंतर से जीतीं चुनाव
उन्होंने दूसरी लोकसभा का चुनाव 1957 में मुंबई प्रांत के गिरनार लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर जीता। गिरनार में उन्होंने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के गुलाबचंद बखारिया को भारी मतों से पराजित किया था। तीसरी लोकसभा का चुनाव उन्होंने गुजरात के अमरेली लोकसभा क्षेत्र से जीता। अमरेली में उन्होंने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के मथुरादास मेहता को भारी मतों से पराजित किया था। जया बेन के 1957 में71 फीसदी मत मिले थे जबकि 1962 में 61 फीसदी मत लेकर विजयी हुई थीं। 1967 में भी उन्होंने अमरेली से जीत दर्ज की।
अर्थशास्त्र में एमए की पढ़ाई
जयाबेन का जन्म गुजरात के भावनगर शहर में जैन परिवार में हुआ। उनके पिता त्रिभुवनन नंद शाह शहर के सम्मानित व्यक्ति थे। जयाबेन ने मुंबई विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एमए तक पढ़ाई की थी। उनका 1945 में 7 अप्रैल को वजूभाई शाह के संग विवाह हुआ। उन्हे एक पुत्र और एक पुत्री हुई। उनके पति वजूभाई शाह गांधीवादी और सर्वोदयी नेता थे। पति की प्रेरणा से वे सामाजिक जीवन में सक्रिय हुईं।
सौराष्ट्र से राजनीति की शुरुआत
जयाबेन ने पहले समाजसेवा के क्षेत्र में कदम रखा फिर सौराष्ट्र की स्थानीय राजनीति से अपनी शुरुआत की। वे 1948 से 1952 तक सौराष्ट्र से संविधान सभा की सदस्य रहीं। वे 1952 से 1956 तक सौराष्ट्र राज्य विधानसभा की भी सदस्य चुनीं गईं। वे सौराष्ट्र प्रांत में शिक्षा राज्य मंत्री भी रहीं।
खादी के लिए समर्पित जीवन
जयाबेन का जीवन खादीग्रामोत्थान और बालकल्याण के कार्यों में समर्पित रहा। सौराष्ट्र क्षेत्र में खादी के प्रसार के लिए उन्होंने लगातार काम किया। वे 1954 में सौराष्ट्र काउंसिल ऑफ चाइल्ड वेलफेयर की अध्यक्ष चुनीं गईं। वे गुजरात प्रांत चाइल्ड वेलफेयर काउंसिल की उपाध्यक्ष भी रहीं। उन्होंने गुजरात में सामुदायिक स्वच्छता कार्यक्रमों की अगुवाई की। पंचायत सुधार और प्राकृतिक चिकित्सा भी उनकी रूचि के विषय थे।
कई देशों का दौरा किया
अपने संसदीय जीवन की समाप्ति के बाद वे राजकोट में रहने लगीं। गुजराती के जानेमाने शायर झावेरचंद मेघाणी उनकी पड़ोसी थे। जयाबेन को उनकी कविताएं सुनना खूब पसंद था। एक सांसद के तौर पर उन्होंने इंग्लैंडफ्रांसइटलीजर्मनीडेनमार्कस्वीटजरलैंड और लेबनान जैसे देशों का दौरा किया था। वे 1962 में जेनेवा में हुए वर्ल्ड हेल्थ कान्फ्रेंस में भारतीय प्रतिनिधि बनकर गई थीं। 
सफरनामा

1922 में एक अक्तूबर को उनका जन्म भावनगर में हुआ
1945 में वजूभाई शाह से विवाह हुआ।
1952 में सौराष्ट्र विधानसभा की सदस्य बनीं।
1957 में गिरनार लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर पहला चुनाव जीता।
1962 में गुजरात के अमरेली से लोकसभा का चुनाव जीता।
2014 में गुजरात में उनका निधन हो गया।
 ( प्रस्तुति - विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com ) 

Monday, 22 April 2019

शकुंतला नायर-पहली लोकसभा में हिंदू महासभा की एकमात्र सांसद


( महिला सांसद 39  ) शकुंतला नायर हिंदू महासभा के टिकट पर चुनाव जीतकर उत्तर प्रदेश से लोकसभा में पहुंची। पहली लोकसभा में वे हिंदू महासभा की एकमात्र महिला सांसद थीं। मूल रूप से उत्तराखंड की रहने वाली शकुंतला ने दक्षिण भारतीय चर्चित आईसीएस अधिकारी केके नायर से विवाह किया था।
उत्तराखंड में जन्म हुआ
शकुंतला के पिता दिलीप सिंह बिष्ट देहरादून जिले में रहते थे। शकुंतला की स्कूली पढ़ाई मसूरी के विंडबर्ग गर्ल्स हाईस्कूल में हुई। विद्यार्थी जीवन में अत्यंत मेधावी छात्रा थीं। सन 1946 में 20 अप्रैल को उनका विवाह आईसीएस अधिकारी केके नायर के संग हुआ। पति-पत्नी दोनों ही हिंदूवादी विचारों के थे। शकुंतला हिंदू महासभा में सक्रिय हुईं तो पति केके नायर भारतीय जनसंघ से जुड़े।
तीन बार लोकसभा में
शकुंतला नायर ने हिंदू महासभा के गोंडा पश्चिम सीट से 1952 में कांग्रेस उम्मीदवार लाल बिहारी टंडन के पराजित किया था। तब शकुंतला की उम्र महज 26 साल थी। वे 1962 से 1967 तक उत्तर प्रदेश विधान सभा की भी सदस्य रहीं। बाद में शकुंतला नायर को भारतीय जन संघ ने कैसरगंज लोकसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतारा। यहां पर उन्होंने 1967 का चुनाव त्रिकोणीय मुकाबले में स्वतंत्र पार्टी और कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार को हरा कर जीता। वे 1971  में भी कैसरगंज से कड़े मुकाबले में जीतीं। अपने ‘खुरमे’ की मिठास लिए उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में बसा ‘कैसरगंज’ पूरे भारत में मशहूर है।
पति पत्नी दोनों एक साथ संसद में
शकुंतला के पति केके नायर मूल रूप से केरल के अलेप्पी के रहने वाले थे। पर आईसीएस के तौर पर उनकी ज्यादा समय पोस्टिंग यूपी में रही। पर 1952 में वे आईसीएस छोड़कर वकालत करने लगे। बाद में वे राजनीति में आ गए। सन 1967 में केके नायर ने भी बहराइच से लोकसभा का चुनाव भारतीय जन संघ के टिकट पर जीता था। इस तरह चौथी लोकसभा में पति और पत्नी दोनों ही संसद में पहुंचे थे।
रामलला को विराजमान करने में भूमिका
सन 1949 में 22-23 दिसंबर की रात को अयोध्या के बाबरी मस्जिद में रामलला की मूर्तियां आश्चर्यजनक ढंग से प्रकट हो गईं। तब केके नायर फैजाबाद के जिलाधिकारी थे। कहा जाता है कि मंदिर रामलला की मूर्तियां स्थापित करने में उनकी पत्नी शकुंतला नायर की भी भूमिका थी। इसके बाद हुए पहले लोकसभा चुनाव में शकुंतला को हिंदू महासभा ने गोंडा वेस्ट ( अब कैसरगंज) से अपना उम्मीदवार बनाया।
फैजाबाद को बनाया घर
नायर दंपति ने यूपी के देवीपाटन और फैजाबाद क्षेत्र को अपनी कर्मभूमि बनाया। वे लोग अपने समय में उत्तर प्रदेश में हिंदुत्व का प्रतीक बन गए थे। उन्होंने फैजाबाद में अपना घर बनाया था। अपने आखिरी दिनों में शकुंतला नायर फैजाबाद में रहती थीं। शकुंतला नायर को पढ़ाई करने और बागवानी का शौक था। उनकी दो संताने हुईं।
सफरनामा
1926 में जनवरी में उनका जन्म देहरादून में हुआ
1946 में 20 अप्रैल को उनका विवाह केके नायर, आईसीएस से हुआ।
1952 में गोंडा वेस्ट से चुनाव जीत कर संसद में पहुंची।
1967 व 1971 में कैसरगंज से लोकसभा का चुनाव जीता।
 ( प्रस्तुति - विद्युत प्रकाश मौर्य Email- vidyutp@gmail.com )