Tuesday 9 April 2019

लक्ष्मी कांतम्मा- कम्युनिस्टों का किला बेध कर संसद में पहुंची


(महिला सांसद 27 ) 
लक्ष्मी कांतम्मा तीसरी लोकसभा में 1962 में आंध्र प्रदेश के खम्मम क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंचीं। कांताम्मा 1967 और 1971 का चुनाव भी कांग्रेस के टिकट पर जीता। लक्ष्मी ने संसद में प्रखर वक्ता के रूप में अपनी पहचान बनाई। उनके पहले खम्मम लोकसभा सीट पर कम्युनिस्ट पार्टी के नेता चुनाव जीत रहे थे। कांतम्मा ने वामपंथियों के किले को बेधने में सफलता पाई थी।
उच्च शिक्षित और प्रखर वक्ता
तेलंगाना के महबबूनगर जिले के नामी रेड्डी जमींदार परिवार से ताल्लुक रखने वाली लक्ष्मी बौद्धिक तौर पर प्रखर थीं। लंबीछरहरी कदकाठी वाली लक्ष्मी उच्च शिक्षित और अपने समय की प्रखर वक्ता थीं। राजनीति में कदम रखने के बाद लक्ष्मी कांताम्मा  ने1957 में खम्मम से आंध्र प्रदेश विधानसभा का चुनाव जीता था। उन्होंने 33 साल की उम्र में कम्युनिस्टों के अजेय गढ़ में जीत दर्ज कराकर खुद को राजनीति में स्थापित किया। आंध्र प्रदेश की राजनीति में वे पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव की काफी करीबी मानी जाती थीं।
वामपंथ की ओर झुकाव
लक्ष्मी कांतमा की स्कूली पढ़ाई कई शहरों में हुई। उन्होंने मछलीपट्टनम ने बीए और चेन्नई से एमए की पढ़ाई की। छात्र जीवन में उनका झुकाव वामपंथी छात्र संगठनों की की तरफ रहा पर उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी की जगह आगे कांग्रेस का दामन थामा। उनके पति वन सेवा के अधिकारी थे।
इमरजेंसी का विरोध किया
भारत-चीन युद्ध के समय 1962 में कांतम्मा ने राइफल चलाने का प्रशिक्षण लिया साथ ही शूटिंग में दो पुरस्कार भी जीते। उन्होंने महिलाओं के पिता की संपत्ति में 50 फीसदी अधिकार दिलाने के लिए कई बार सांसद के तौर पर आवाज उठाई। हालांकि वे पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की करीबी थीं पर उन्होंने इमरजेंसी लगाने का विरोध किया। कांतम्मा को अपनी जीप खुद चलाना पसंद था। जीवन के आखिरी वक्त तक वे सक्रिय रहीं।
बाद में साध्वी बन गईं
अस्सी के दशक में लक्ष्मी ने राजनीति से अपने सारे संपर्क तोड़कर आध्यात्म की ओर रूख किया। वे साध्वी बन गईं। वे गुरु श्रीशिवा बालयोगी महाराज के शरण में चली गईं। उन्होंने अपनी संपत्ति का बड़ा हिस्सा धर्मार्थ कामों में दान में दे दिया।

सफरनामा
1924 में 16 जुलाई को तेलंगाना में उनका जन्म हुआ।
1944 में 1 नवंबर को टी वेंकट सुब्बाराव से उनका विवाह हुआ।
1957 में खम्मम से आंध्र प्रदेश विधानसभा का चुनाव जीता। 
2007 में 13 दिसंबर को विजयवाड़ा में उनका निधन हो गया।


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