(महिला सांसद - 43 )
सफरनामा
जोहरा बेन चावडा ने
बापू के सानिध्य में सात साल गुजारे थे। उनका पूरा जीवन वंचित समाज की सेवा के लिए
समर्पित रहा। वे तीसरी लोकसभा 1962 में गुजरात के बनासकांठा से लोकसभा चुनाव जीतकर
संसद में पहुंची थीं। जोहराबेन गांधीवादी मूल्यों में आस्था रखती थीं और सांसद के
तौर पर भी उनका जीवन अत्यंत सादगी भरा था।
नर्सिंग का कोर्स कर समाज
सेवा में
जोहराबेन अकरबभाई
चावड़ा का जन्म 1923 में दो सितंबर को साबरकांठा जिले में परंतिज शहर में हुआ था।
उनके पिता जामियातखान उमरखान पठान शहर के सम्मानित व्यक्ति थे। उनकी स्कूली पढ़ाई
अपने शहर में ही हुई। स्कूली जीवन से ही उनकी समाज सेवा में रूचि थी। सेवा भाव के
कारण ही जोहरा बेन ने वर्धा जाकर नर्सिंग का कोर्स किया।
गांधीवादी अकबरभाई से विवाह
नर्सिंग का प्रशिक्षण
पूरा करने के बाद वे गुजरात विद्यापीठ में काम करने लगीं। यहीं कार्य के दौरान ही
उन्होंने गांधीवादी अकबर भाई दालुमिया चावड़ा के संग विवाह किया। दरअसल अकबरभाई
ब्रिटिश पुलिस में थे। उनकी ड्यूटी गुजरात विद्यापीठ में जासूसी के लिए लगी थी।
इसी दौरान वे गांधीजी से प्रभावित होकर पुलिस की नौकरी छोड़ गांधीवादी कार्यकर्ता
हो गए। बापू की सलाह पर ही दोनों ने विवाह किया।
वंचित समाज के जीवन में
बदलाव के लिए कार्य
जोहराबेन बापू के
साबरमती आश्रम में सात साल तक उनके साथ आश्रम में रहीं। बापू की सलाह पर जोहराबेन
और उनके पति बनासकांठा जिले के सनाली ग्राम में गए और वहां वंचित समाज के जीवन में
बदलाव लाने के लिए काम करना शुरू किया। यह अति पिछड़ा इलाका था जहां भील आबादी
बड़ी संख्या में थी। यहां पति-पत्नी ने मिलकर 1948 में सर्वोदय आश्रम खोला और
बच्चों के पढ़ाने का कार्य शुरू किया। बाद में जोहराबेन कांग्रेस पार्टी की
गतिविधियों में हिस्सा लेने लगीं। वे बनासकांठा जिला कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष भी
बनीं।
भारी अंतर से जुनाव जीता
सर्वोदय आश्रम में सेवा
कार्य करते हुए उनके पति अकबरभाई चावडा 1952 और 1957 में बनासकांठा से सांसद चुने
गए थे। पर बनासकांठा में 1962 का लोकसभा चुनाव जोहराबेन ने लड़ा और अपने निकटतम
प्रतिद्वंद्वी को तकरीबन दुगुने से ज्यादा मतों के अंतर से पराजित किया था।
जोहराबेन के एक लाख 15 हजार मत मिले तो स्वतंत्र पार्टी के कन्हैयालाल मेहता को 60
हजार मत मिले थे।
आश्रम का पुनर्निर्माण
बाढ़ आने के कारण सनाली
आश्रम तबाह हो जाने पर चावडा दंपति ने 1965 में सानाली आश्रम की फिर से स्थापना की
और एक बार फिर पूरे दमखम से समाजसेवा के कार्यों में जुट गए। जोहरा बेन सेवा और
सादगी की प्रतिमूर्ति थीं। एक सांसद के तौर पर भी उनके जीवन में कोई आडंबर नहीं था।
उनकी रुचि खेतीबाड़ी और सेवा कार्य में थी। अपने जीवन के आखिरी दिनों में अपने
आश्रम में ही रहती थीं। उनका निधन 1997 में हुआ। एक वर्ष बाद उनके पति का भी निधन
हो गया।
सफरनामा
1923 में 2 सितंबर को
उनका जन्म साबरकांठा जिले में हुआ।
1946 में गांधीवादी
अकबरभाई चावड़ा से विवाह किया।
1948 में सानाली में
सर्वोदय आश्रम की स्थापना की।
1962 में तीसरी लोकसभा
का चुनाव बनासकांठा से जीता।
1997 में उनका गुजरात
में निधन हो गया।
-vidyutp@gmail.com
3 comments:
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 122वां जन्म दिवस - नितिन बोस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
अच्छी और विस्तृत जानकारी?
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