Saturday, 6 April 2019

पार्वती कृष्णनन- राजसी ठाठ छोड़ मजदूरों की हमदर्द बनीं


(महिला सांसद 24) पार्वती कृष्णनन स्वतंत्रता के बाद देश में साम्यवादी आंदोलन का प्रमुख चेहरा थीं। उनकी पहचान एक बड़े ट्रेड यूनियन लीडर के तौर पर थी। तमिलनाडु के एक अत्यंत अमीर परिवार में जन्मी पार्वती ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ाई के बाद राजसी ठाठ और ऐशो-आराम की जिंदगी त्याग दिया और गरीबों और मजदूरों की हमदर्द बन गईं।
कोयंबटूर से तीन बार सांसद
पार्वती कृष्णनन ने 1957 में दूसरी लोकसभा का चुनाव तमिलनाडु को कोयंबटूर से कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर जीता। उन्होंने 1974 में कोयंबटूर से उप चुनाव जीता। एक बार फिर वे 1977 में कोयंबटूर से ही लोकसभा के लिए चुनीं गईं। एक बार वे उच्च सदन राज्यसभा के लिए भी चुनी गईं। हालांकि वे 1952 का उपचुनाव हार गईं थीं। बाद में वे 1962, 1980 और 1984 में भी लोकसभा का चुनाव लड़ी थीं पर जीत नहीं मिली।
जब मोरारजी देसाई को माफी मांगनी पड़ी
जनता पार्टी के शासन में मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री थे, तब उन्होंने संसद में महिलाओँ को लेकर कुछ अशोभनीय टिप्पणी की। पार्वती ने उनका तुरंत विरोध किया और मोरारजी देसाई को अपने शब्दों के लिए माफी मांगनी पड़ी।
मद्रास प्रेसिडेंसी के प्रधानमंत्री की बेटी
उनका जन्म 1919 में परमशिवा सुब्बारायन और राधाबाई सुब्बारायन के घर हुआ। उनके पिता मद्रास प्रेसिडेंसी के प्रधानमंत्री थे। स्कूली पढ़ाई के बाद उच्च शिक्षा के लिए वे ऑक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी गईं जहां वे साम्यवादी विचारों के प्रभाव में आईं। उनके पिता के पास 5000 एकड़ जमीन थी जो बाद में उनके परिवार ने भूमिहीनों को दान कर दी।
एक भाई केंद्रीय मंत्री तो दूसरे सेना प्रमुख
लंदन में पढ़ाई के दौरान वे कम्युनिस्ट आंदोलन में सक्रिय हुईं। इसी दौरान उनकी एन कृष्णन से मुलाकात हुई जो बाद में उनके जीवनसाथी बने। उनके पति जाने माने ट्रेड यूनियन लीडर थे जो 1970 में राज्यसभा के सदस्य भी बने। पार्वती कृष्णन के एक भाई मोहन कुमार मंगलम कांग्रेस पार्टी के नेता थे जो इंदिरा गांधी के कैबिनेट में केंद्रीय मंत्री भी बने। उनके बड़े  भाई गोपाल कुमार मंगलम कोल इंडिया के चेयरमैन बने। उनके एक और भाई जनरल परमासिव प्रभाकर कुमारमंगलम भारतीय सेना के सातवें प्रमुख बने।

नब्बे साल की उम्र में भी खूब सक्रिय रहीं
पार्वती कृष्णनन अपने जीवन के आखिरी दिनों में भी सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय रहीं। 90 साल की उम्र के बाद भी कोयंबटूर में रोज लोगों से मिलती थीं। उन्होंने फूलों से काफी लगाव था। खाने पीने की शौकीन पार्वती रसोई घर में खाना पकाने के लिए भी समय निकाल लेती थीं। उनका निधन 94 साल की उम्र में 2014 में हुआ। उनकी एक बेटी हैं जो अमेरिका में डॉक्टर हैं।

सफरनामा
1919 में 15 मार्च को उटी में जन्म हुआ।
1949 से 1952 तक अंडरग्राउंड रहकर काम किया।
1942 में एनके कृष्णन के संग उनका विवाह हुआ।
1954 में राज्यसभा के लिए चुनी गईं।
1957, 1974 और 1977 में लोकसभा का चुनाव जीता।
2014 में 20 फरवरी को कोयंबटूर में मृत्यु हो गई।


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