Monday, 8 April 2019

मैत्रेयी बोस - डॉक्टरी छोड़ मजदूरों के कल्याण में जीवन लगाया


(महिला सांसद - 26 ) 
पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग से 1967 में चौथी लोकसभा में चुनाव जीत कर पहुंची मैत्रेयी बोस अपने समय की जानी मानी चिकित्सक थीं। पर डॉक्टरी छोड़कर वे भारत छोड़ो आंदोलन में कूदीं और बाद में पूरा जीवन मजदूरों, महिलाओं और बच्चों के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया।
दार्जिलिंग से उन्होंने लोकसभा का चुनाव स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर जीता था। उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार और मौजूदा सांसद टी मनन को हराया था। दार्जिलिंग के सांसद के तौर पर लोकसभा में वे नेपाली भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए निजी विधेयक लेकर आई थीं। मैत्रेयी बोस ने 1952 में पहले लोकसभा चुनाव में घाटल से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था, तब वे दूसरे स्थान पर रही थीं।
बंगाल की राजनीति में
सांसद बनने से पहले वे ट्रेड यूनियन संगठनों के साथ ही पश्चिम बंगाल की राजनीति में सक्रिय थीं। वे 1954 से 1967 तक कांग्रेस पार्टी से राज्य विधानसभा की सदस्य रहीं। उन्होंने 1964 में जापान के हिरोसीमा और नागासकी में एंटी बम कान्फ्रेंस में हिस्सा लिया था।
म्युनिख से एमडी किया
मैत्रेयी बोस के पिता शशिभूषण बोस गिरिहीह शहर के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। स्कूली पढ़ाई के बाद वे उच्च अध्ययन के लिए कोलकाता पहुंची। कोलकाता मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस करने के बाद उन्होंने म्यूनिख से एमडी किया था। भारत लौटने पर उन्होंने एक डाक्टर के तौर पर मेडिकल प्रैक्टिस शुरू की। पर सन 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में कूदने के बाद उन्होंने प्रैक्टिस छोड़ दी।
इंटक की राष्ट्रीय अध्यक्ष
डॉक्टर मैत्रेयी बोस का मजदूर आंदोलन से काफी जुड़ाव रहा। वे 1943 में ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के संपर्क में आईं। सन 1948 में वे इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस से जुड़ गईं। वे 1955 से 1962 तक इंटक की बंगाल शाखा की अध्यक्ष भी रहीं। वे 1962-63 में इंटक की राष्ट्रीय अध्यक्ष भी चुनीं गईं।
अनाथ बच्चों के लिए काम
बाल कल्याण के लिए काम करने वाली संस्था के लिए 1944 में उन्होंने सेव द चिल्ड्रेन कमेटी के लिए मानद सेक्रेट्री के तौर पर काम करना शुरू किया। अनाथ बच्चों के लिए उन्होंने छह अनाथलायों की स्थापना करवाई जिसमें 600 निराश्रित बच्चों को घर मिला। उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में एंबुलेंस सेवाएं शुरू करवाई। कोलकाता के पास महिलाओं और बच्चों के लिए अस्पताल खुलवाने में सक्रिय भूमिका निभाई।
चिकित्सा पर पुस्तकें लिखीं
उन्होंने मजदूर संगठन के सम्मेलन में हिस्सा लेने के क्रम में जर्मनी, इटली, ऑस्ट्रेलिया,. फ्रांस, जापान जैसे देशों का दौरा किया था। संसदीय पारी खत्म होने के बाद वे कोलकाता के ठाकुर पुकुर रोड में रहने लगीं। डॉक्टर मैत्रेयी बोस की रूचि पुरातत्व, वास्तुशास्त्र और भारतीय दर्शन में भी रहा। उन्होंने ट्रेड यूनियन और महिलाओं और बच्चों की चिकित्सा पर कुछ लघु पुस्तकें लिखीं और अखबारों में कई लेख भी लिखे।
सफरनामा
1905 में सात अक्तूबर को गिरिडीह ( तब बिहार) में उनका जन्म हुआ।
1937 में 29 अगस्त को उनका विवाह स्वदेश बसु से हुआ
1942 से 1967 तक वे कांग्रेस पार्टी की सदस्य रहीं।
1954 में पश्चिम बंगाल विधानसभा के लिए चुनी गईं
1967 में स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर दार्जिलिंग से लोकसभा चुनाव जीता।
1999 में उनका कोलकाता में निधन हो गया।


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