Tuesday, 16 April 2019

सुशीला गोपालन - छात्र और नारीवादी आंदोलन का प्रमुख चेहरा


( महिला सांसद 33 ) सुशीला गोपालन संसद के उन सदस्यों में याद की जाती हैं जो छात्र आंदोलन से देश की राजनीति में आई थीं। आंदोलन के क्रम में कई बार जेल गईं। वे जीवन भर मजदूरों के हक की लड़ाई लड़ती रहीं। वे कई सालों तक केरल सरकार में मंत्री भी रहीं। वे देश के ट्रेड यूनियन और नारीवादी आंदोलन का प्रमुख नाम थीं।
तीन बार लोकसभा में
सुशीला गोपालन ने 1967 में चौथी लोकसभा का चुनाव सीपीएम के टिकट पर अलपुझा से जीता और पहली बार संसद में पहुंची। इसी साल उनके पति एके गोपालन कासरगोड से जीतकर संसद में पहुंचे थे। इसके बाद वे 1980 में चिरयिन्किल से जीतकर लोकसभा में पहुंची। वे 1991 में तीसरी बार लोकसभा का चुनाव जीतकर संसद पहुंची। एक सांसद के तौर पर उन्होंने दहेज प्रथा के खिलाफ कानून निर्माण में और सीआरपीसी के सुधार में सक्रिय भूमिका निभाई।


त्रावणकोर के दीवान के खिलाफ आंदोलन
एक छात्र नेता के तौर पर सुशीला गोपालन ने 1947 में त्रावणकोर के दीवान के खिलाफ आंदोलन की अगुवाई की। इस आंदोलन में सक्रियता से हिस्सा लेने पर उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया। इसके बाद अपनी बीए की पढ़ाई उन्होंने चार अलग अलग कॉलेजों से पूरी की। इसी दौरान 1948 में उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता ली।
एके गोपालन से विवाह
सुशीला गोपालन का जन्म 1929 में केरल के अलपुजा जिले के एक गांव में एजवा समुदाय में हुआ था। उनका विवाह प्रसिद्ध कम्युनिस्ट नेता एके गोपालन के संग 1952 में हुआ था। गोपालन नायर समुदाय से आते थे, पर गोपालन से उनकी मुलाकात आंदोलन के दौरान भूमिगत रहने के दिनों में हुई थी जिसके बाद दोनों में प्यार हो गया। उनकी एक बेटी हैं जिनका नाम लैला गोपालन है।

जेल में रहकर पहला चुनाव जीता
सुशीला ने 1965 में केरल में विधान सभा का अपना पहला चुनाव आंबालपुजा से जेल में रहते हुए जीता था। वे 1965-66 में 16 महीने तक जेल में रहीं थी। इमरजेंसी के दौरान भी वे एक हफ्ते तक जेल में रहीं।

एक वोट से नहीं बन सकीं सीएम
सुशीला गोपाल 1996 में केरल की मुख्यमंत्री बनने की प्रबल दावेदार थीं, पर सीपीएम की कमेटी में वे मात्र एक वोट से पीछे रह गईं। फिर वे 1996 से 2001 तक केरल में इके नयनार के मंत्री मंडल में उद्योग और समाज कल्याण मंत्री रहीं।

जनवादी महिला समिति की संस्थापक
सुशीला गोपालन केरल कांग्रेस के राज्य सचिवालय और सेंट्रल कमेटी के मेंबर के तौर पर लंबे समय तक सक्रिय रहीं। वे अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की संस्थापक अध्यक्ष थीं। वे केरल कोयर वर्कर्स यूनियन की 1971 के बाद जीवन पर्यंत अध्यक्ष रहीं।

सुशीला गोपालन की लिखने पढ़ने में काफी रुचि थी। उन्होंने द गोल्डेन फ्लावर पुस्तक का अंग्रेजी से मलयालम में अनुवाद किया। खाली समय में वे बागवानी और खेतीबाड़ी में भी समय देती थीं।

सफरनामा
1929 में 29 दिसंबर को मुहम्मा में उनका जन्म हुआ।
1952 में एके गोपालन के संग उनका विवाह हुआ।
1965 में पहली बार विधानसभा का चुनाव जीता।
1967 में पहली बार लोकसभा का चुनाव जीता।
2001 में 19 दिसंबर को तिरुवनंतपुरम में उनका निधन हो गया।



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