मोफिदा अहमद 1957 में
दूसरी लोकसभा में असम के जोरहाट से चुनाव जीतकर पहुंची। वह संसद में असम की पहली मुस्लिम महिला
सदस्य थीं। वे समाजसेविका के साथ ही असमिया की सम्मानित लेखिका भी थीं। वे
पूर्वोत्तर के उन मुस्लिम महिलाओं में शामिल थीं जिन्होंने पर्दा प्रथा को चुनौती
देते हुए राष्ट्रवादी राजनीति की मुख्यधारा में शिरकत की।
मोफिदा का जन्म जोरहाट
शहर में हुआ था। उनके पिता बौरा अली शहर के सम्मानित व्यक्ति थे। उनकी शुरुआती
शिक्षा घर में ही हुई। वे उच्च शिक्षा के लिए किसी कॉलेज में नहीं गईं, पर
स्वाध्याय से विदूषी महिला बनीं। मोफदिया असमिया साहित्य की सम्मानित लेखिका थीं।
उन्होंने आठ पुस्तकों की रचना की। वे खास तौर पर लघुकथाएं लिखती थीं।
रेडक्रॉस से जुड़ कर
समाज सेवा
मोफिदा का 1940 में
असनद्दीन अहमद से विवाह हुआ। परंपरागत मुस्लिम परिवार से आने वाली मोफदिया विवाह
के बाद सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय हुईं। वे 1946 में जोरहाट की रेडक्रॉस
सोसाइटी से जुड़ कर समाजसेवा करने लगीं। वे रेडक्रॉस सोसाइटी की संयुक्त सचिव
बनीं। वे 1951 मे तेजपुर महिला समिति की पदाधिकारी बनीं। अत्यंत गरीब महिलाओं के
कल्याण के लिए उन्होंने काम किया। कामकाजी गर्भवती महिलाओं के लिए कल्याण के लिए
भी उन्होंने प्रयास किए।
लोकसभा की जंग में
समाज सेवा के बाद वे
कांग्रेस पार्टी में सक्रिय हुईं। वे 1953 में गोलाघाट कांग्रेस के महिला विभाग की
संयोजक बनाई गईं। सांसद
बनने से पूर्व उन्होंने राष्ट्रीय बचत योजना के लिए दो वर्षों तक काम किया। सन 1957
में दूसरे लोकसभा के
चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें टिकट दिया। अपने निकटम प्रतिद्वंद्वी सैयद अब्दुल
मल्लिक को उन्होंने 47
हजार से ज्यादा मतों से
पराजित किया। मोफदिया अहमद को 80 हजार मत मिले जबकि
मल्लिक को महज 33
मत ही मिले।
गांधी और नेहरु पर
किताब लिखी
मोफिदा तीसरी लोकसभा
में 1962 और छठी लोकसभा में 1971 में भी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ीं पर
उन्हें सफलता नहीं मिल सकी। पर संसदीय पारी खत्म होने के बाद वे लेखन में सक्रिय
रहीं। मोफिदा अहमद गांधी और नेहरु के
विचारों से काफी प्रभावित थीं। उन्होंने असमिया में दो पुस्तकें लिखीं बिशवदीप
बापूजी और भारतार नेहरु। उन्होंने खाली समय में
बागवानी का शौक था। वे सिलाई, कढ़ाई और बुनाई का भी शौक रखती थीं।
मुस्लिम वूमेन फोरम ने
2018 में उन्हें बीसवीं सदी की 21 ऐसी महिलाओं की सूची में शामिल किया जिन्होंने
सामाजिक गतिरोधों को तोड़कर समाज को बदलने का काम किया। फोरम ने उनपर एक प्रदर्शनी
का आयोजन किया था।
सफरनामा
1921 में नवंबर में
उनका जन्म जोरहाट में हुआ।
1940 में 11 दिसंबर को
उनका विवाह हुआ।
1957 में दूसरी लोकसभा
के लिए चुनी गईं।
1908 मे 17 जनवरी को
उनका निधन हो गया।
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