Friday 19 April 2019

अनुसुइया बाई काले -पच्चीस क्रांतिकारी युवकों को फांसी से बचाया


( महिला सांसद - 36 ) अनुसुइया बाई काले पहली लोकसभा का चुनाव 1952 में नागपुर क्षेत्र से जीतकर संसद में पहुंची। लगातार दूसरी बार भी 1957 में उन्होंने नागपुर से ही लोकसभा का चुनाव जीता। दोनों चुनाव में उन्होंने भारी अंतर से जीत दर्ज की थी। सन 1942 के आंदोलन के दौरान उन्होंने 25 क्रांतिकारी युवकों को मुकदमा लड़कर फांसी से बचाया था।
विधान मंडल की उपाध्यक्ष बनीं
अनुसुया बाई युवावस्था में ही राजनीति में सक्रिय हो गई थीं। वे सन 1928 में मध्य प्रांत और बरार विधान मंडल की पहली महिला सदस्य चुनीं गईं थी। अपनी राजनीतिक सक्रियता के कारण वे 1937 में मध्य प्रांत विधानमंडल की उपाध्यक्ष चुनीं गईं। पर द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेज सरकार की भूमिका से नाराज होकर उन्होंने विधानमंडल से इस्तीफा दे दिया। स्वतंत्रता के बाद 1948 में वे ऑल इंडिया वूमेन कान्फ्रेंस की अध्यक्ष भी चुनीं गईं।  
औंध के दीवान की बेटी
अनुसुइया बाई महाराष्ट्र के सतारा जिले के औंध राज्य के दीवान के परिवार से आती थीं। उनके पिता सदाशिवराव भाटे जाने माने वकील थे। उनकी पढ़ाई हुजुर पागा हाई स्कूल और फर्ग्यूसन कॉलेज पूणे में हुई। वे बाद बड़ौदा कॉलेज, वडोदरा की भी छात्रा रहीं। उनका विवाह नासिक के सबसे अमीर परिवार में पुरुषोत्तम बालकृष्ण काले के संग हुआ। उनकी कुल पांच संताने हुईं। उनके एक बेटे वसंत पुरुषोत्तम काले मराठी के जाने माने कथाकार हुए।
बड़े नेताओं को पराजित किया
उन्होंने विदर्भ क्षेत्र के नागपुर शहर को अपनी कर्मभूमि बनाया। 1952 के पहले लोकसभा चुनाव में अनुसुइया बाई ने कांग्रेस उम्मीद्वार के तौर पर सोशलिस्ट पार्टी के विनायक दांडेकर को पराजित किया। इसके बाद 1957 के दूसरे लोकसभा चुनाव में उन्होंने आवडे हरिदास दामजी को पराजित किया।
बापू के अहिंसक आंदोलन में
अनुसुइया बाई ने बापू के अहिंसक आंदोलनों का नागपुर में नेतृत्व किया। वे असहयोग आंदोलन में काफी सक्रिय रहीं। 1930 में वे बापू के साथ नमक सत्याग्रह में भी शामिल हुईं। इस दौरान उनकी गिरफ्तारी भी हुई। 1935 में नागपुर कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष चुनीं गईं। वे 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान फिर कांग्रेस में सक्रिय हुईं।
सन 42 में 25 नवयुवकों को फांसी से बचाया
भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लेने वाले 25 युवकों को जब फांसी की सजा सुनाई गई तो अनुसुइया बाई ने इसका विरोध किया। क्योंकि इन युवकों  महिला अत्याचार के विरोध में क्रुध होकर कुछ गोरे सैनिकों की हत्या की थी। आष्टी और चिमूर गांव के 25 युवकों का ऐतिहासिक मुकदमा लड़कर उन्होंने युवकों को फांसी से बचाने का सराहनीय कार्य किया था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उन्हें केंद्रीय विधानसभा के लिए चुना गया।
महिला आंदोलन में भागीदारी
महिलाओं के कल्याण के लिए नागपुर में अनुसुइया बाई ने भगनी मंडल और ऑल इंडिया वूमेन कान्फ्रेंस की शाखा की स्थापना की। इसके अलावा 1930 से 1950 के बीच वे नागपुर में कई समाजसेवी संस्थाओं से जुड़ी रहीं। दो बार के लोकसभा के कार्यकाल में एक सांसद के तौर पर वे वाणिज्य मंत्रालय की औद्योगिक सलाहकार समिति में रहीं। वे कनाडा गए कॉमनवेल्थ संसदीय समिति की भी सदस्य रहीं। अनुसुइया बाई की खाली समय में रसोई में रूचि थी। वे नागपुर के कई क्लबों की भी सदस्य रहीं। वे अपने आखिरी दिनों में नागपुर के धनतोली में रहती थीं।
सफरनामा
1896 में 24 अक्तूबर को उनका जन्म कर्नाटक के बेलागावी में हुआ।
1928 में मध्य प्रांत विधान मंडल की सदस्य चुनीं गईं।
1948 में ऑल इंडिया वूमेन कान्फ्रेंस की अध्यक्ष चुनीं गईं।
1952 और 1957 में नागपुर से चुनाव जीता।
1958 में उनका सांसद रहते हुए निधन हो गया।


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